
ट्रेन (फाइल फोटो)
नागपुर. जनता अपने नेता को विधायक या सांसद इसलिए चुनती है ताकि वे शहर और उनके लिए सरकार के माध्यम से जरूरी साधन और सुविधायें उपलब्ध करायें. इन्हीं साधनों और सुविधाओं के सहारे नागरिकों और क्षेत्र का विकास होता है. यूं तो नागपुर में कई विकास कार्य हो रहे हैं. साथ ही जरूरत है नागपुर व पुणे के बीच एक नियमित प्रीमियम ट्रेन की जो 12 से 13 घंटे में यह सफर पूरा करवा दें. लेकिन हमारे नेता बातें ही करते रहे गये और बल्लारशाह वालों ने अपने नागरिकों के लिए मुंबई के लिए एक ट्रेन नियमित करवा ली. इसका उद्घाटन 12 मार्च को किया जाना है और हमारे नेता ‘थोथा चना, बाजे घना’ वाली कहावत चरितार्थ करते रहे गये.
ज्ञात हो कि नागपुर और पुणे के बीच दुरंतो या वंदे भारत जैसी प्रीमियम ट्रेन की भारी मांग है. यात्री भी अपनी यह जरूरत सार्वजनिक माध्यमों के जरिये रेलवे के समक्ष रख चुके हैं. हमारे स्थानीय नेताओं ने भी इस रूट पर हर दिन चलने वाली एक नियमित प्रीमियम ट्रेन की मांग को जायज ठहराया. रेल मंत्री से चर्चा करने, मांग करने, पत्र देने, ध्यानाकर्षण जैसे बड़े-बड़े बयान दिये. त्योहारी सीजन में 2 जोड़ी ट्रेनों में 5-5 एसी कोच स्थायी तौर पर बढ़ाये जाने से हजारों यात्रियों को उम्मीद थी कि अब रेलवे एक प्रीमियम ट्रेन की जरूरत पर गंभीरता से ध्यान देगा. उधर जोन कार्यालय ने दूसरी बार नागपुर-पुणे-नागपुर को लेकर जरूरी जानकारी, संभावनाओं, सर्वे आदि की रिपोर्ट भी मांगी. इससे यात्रियों की उम्मीदें अधिक मजबूत हो गई. लगा कि हमारे नेता अब इस रूट पर एक प्रीमियम ट्रेन दिलवा ही देगें. यह बात और कि सारे के सारे यहीं धरे रहे और बल्लारशाह के नेता उनकी नाक के नीचे एक स्पेशल ट्रेन को नियमित करा ले गये.
सूत्रों के अनुसार नागपुर के नेताओं द्वारा रेल मंत्री तक नई ट्रेनें आदि की मांग रखने का रिवाज ही नहीं है. बोर्ड तक पहुंच रखने वाले कुछ रेल यूनियनों और समिति सदस्यों का कहना है कि हमारे नेता जनप्रतिनिधि होने के बावजूद जनता की मांग रेलवे के समक्ष रखने से पीछे हटते हैं. जब मांगा ही नहीं जायेगा तो मिलेगा कैसे. साफ है कि चुनाव से पहले पुणे के लिए प्रीमियम ट्रेन नहीं मिलना, जनता नहीं, बल्कि हमारे जनप्रतिनिधियों की असफलता है.






