मस्कर्या गणपति का आगमन,बुधवार को स्थापना होगी,238 साल पुरानी परंपरा जारी (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Nagpur News: बुधवार, 10 सितंबर को वरिष्ठ भोंसला महल में पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ श्री विग्रह स्थापना की जाएगी। इस अवसर पर विविध सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है और इसके माध्यम से 10 दिनों तक वैदर्भ्य लोक कला नृत्य की प्रस्तुतियाँ दी जाएँगी। 10 सितंबर, बुधवार को शाम 5 बजे श्री विग्रह की स्थापना की जाएगी। उसके बाद शाम को “एक शाम सवेरे के नाम” नामक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाएगा।
11 सितंबर को रात 10:30 बजे लावणी का नजारा पेश किया जाएगा। 12 सितंबर को ऑर्केस्ट्रा की प्रस्तुति होगी। और 13 सितंबर को सुबह 10 बजे सत्यविनायक कथा का आयोजन होगा। ऐसे ही कार्यक्रमों के साथ, इस अस्थिरूपी गणपति की स्थापना करके उत्सव को सार्वजनिक रूप दिया गया। बाद में लोकमान्य तिलक ने इसी विचार को आगे बढ़ाया और गणेशोत्सव को एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप दिया।
धनवान राजा खंडोजी महाराज के समय में 21 फीट ऊँची अठारह भुजाओं वाली मूर्ति स्थापित की जाती थी। इस वर्ष उसी परंपरा के अनुसार, सात फीट ऊँची अठारह भुजाओं वाली मूर्ति स्थापित की जाएगी। खास बात यह है कि इस गणेश जी को नवसा लाने वाला माना जाता है और भक्तों का मानना है कि आज भी कई लोग इनके दर्शन कर पाते हैं।
मस्कर्या गणपति नागपुर का एक पारंपरिक और ऐतिहासिक गणेश उत्सव है, जिसकी शुरुआत 1755 ईस्वी में श्रीमंत राजे खंडोजी महाराज भोसले ने की थी। यह उत्सव गणेश चतुर्थी के बाद पितृपक्ष में मनाया जाता है। उत्सव का उद्देश्य बंगाल पर विजय प्राप्त करने वाले राजा खंडोजी महाराज भोसले की जीत का जश्न मनाना था, जब पारंपरिक गणेश उत्सव समाप्त हो चुका था। इसमें संगीत, नृत्य और हास्य के कार्यक्रम शामिल होते हैं और इसे आनंदोत्सव का स्वरूप दिया जाता है।
ये भी पढ़े: शारदीय नवरात्रि में मकर राशि समेत इन 4 राशि के जातकों पर बरसेगी माता की कृपा, मनोकामनाएं होंगी पूरी
1755 में धनाढ्य राजा खंडोजी महाराज भोसले उर्फ चिमनबापू ने हड़पका गणेशोत्सव का आयोजन किया था। एक बार जब चिमनबापू बंगाल विजय करके लौटे, तब तक कुल के गणपति विसर्जित हो चुके थे। इसलिए उन्होंने बंगाल विजय की खुशी मनाने के लिए मस्कर्या गणपति की स्थापना की। इसमें नकल, लावणी, खादिगमत जैसे कार्यक्रम आयोजित कर इसे एक आनंदोत्सव का रूप दिया। पितृ पक्ष में चिमनबापू द्वारा शुरू की गई यह परंपरा आज भी जारी है। इस वर्ष इस उत्सव को 263 वर्ष पूरे हो रहे हैं। चिमनबापू के समय में गणपति की 12 हाथ वाली, 21 फुट की मूर्ति स्थापित की गई थी।