
प्रतीकात्मक तस्वीर (सोर्स: AI)
Nagpur Co-operative Bank Scam: आयकर विभाग की इंटेलिजेंस एंड क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन (आईएंडसीआई) विभाग ने 3 सहकारी बैंकों पर कार्रवाई कर 1,500 करोड़ रुपये के लेने-देन को छुपाने का मामला उजागर किया है। यह ट्रांजेक्शन 22,550 खातों के जरिए किया गया है। 3 बैंकों में 2 नागपुर में स्थित हैं, जबकि एक बैंक नागपुर के बाहर का है।
वर्ष में 2 लाख से अधिक का ब्याज देने और जानकारी नहीं देने का का मामला सबसे अधिक पकड़ा गया है। 50 लाख से अधिक निकासी और जमा के भी 400 मामले सामने आए हैं।
विभाग का अनुमान है कि सहकारी बैंकों के जरिए करोड़ों रुपये के कैश डिपॉजिट जमा किए जा रहे हैं जिनका खुलासा नहीं किया गया था। यह खुलासा तब हुआ जब विभाग ने बैंकों की जांच शुरू की। यह पैसा उन लोगों के खातों में जमा था जिन्होंने इसे अपनी टैक्स रिटर्न में नहीं दिखाया था।
यह मामला तब और गंभीर हो जाता है जब पता चलता है कि प्रॉपर्टी रजिस्ट्रार ऑफिसों के बाद अब टैक्स विभाग भी इस तरह के बड़े घोटालों का पर्दाफाश कर रहा है।
आयकर विभाग की इंटेलिजेंस और क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन विंग ने पिछले हफ्ते सहकारी बैंकों की जांच शुरू की। इस जांच में पता चला कि 3 सहकारी बैंकों में करीब 200 करोड़ रुपये ऐसे जमा थे जिनका स्टेटमेंट ऑफ फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन्स (एसएफटी) में कोई जिक्र नहीं था। एसएफटी एक ऐसा जरूरी दस्तावेज है जो लोगों को अपनी वित्तीय गतिविधियों की जानकारी इनकम टैक्स विभाग को देने के लिए जमा करना होता है।
बैंकों को कई प्रकार के एसटीएफ फार्म के जरिए जानकारी उपलब्ध करानी होती है। एसटीएफ-3 के तहत करंट एकाउंट में 50 लाख से ऊपर की जमा एवं निकासी की जानकारी देना जरूरी है। इसी प्रकार एसएफटी-4 में सेविंग एकाउंट में वर्षभर में 10 लाख से अधिक जमा या निकासी की जानकारी देना अनिवार्य है।
एसएफटी-5 टर्म डिपाजिट के लिए लागू होता है। इसमें 10 लाख से अधिक डिपाजिट करने पर जानकारी देना जरूरी है। इसी प्रकार एसएफटी-16 के तहत साल में 2 लाख से अधिक का ब्याज देने की जानकारी आयकर विभाग को उपलब्ध कराना जरूरी है। बैंक इन नियमों का पालन नहीं कर रहे थे।
सूत्रों ने बताया कि वर्ष में 2 लाख से अधिक ब्याज देने की जानकारी बैंकों ने सबसे अधिक छिपाई थी। 3 बैंकों में ही 20,000 मामले पाए गए हैं। कई मामलों में तो करोड़ रुपये से अधिक का ब्याज भुगतान किया गया है लेकिन उसकी जानकारी बैंक को नहीं दी गई है।
इतना ही नहीं, ब्याज लेने वाले व्यक्ति ने भी अपने रिटर्न में इसे छिपा लिया है, इसलिए यह पूरा का पूरा मामला काफी संदिग्ध दिखाई दे रहा है। यह भी सामने आया कि जैसे प्रॉपर्टी रजिस्ट्रार ऑफिसों ने कुछ ही लेन-देन की जानकारी दी थी, वैसे ही बैंकों ने भी केवल आंशिक रूप से ही जानकारी रिपोर्ट की थी। आश्चर्यजनक रूप से करोड़ों रुपये के बड़े लेन-देन का तो कहीं जिक्र ही नहीं था।
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बैंकों के पास एक मजबूत अकाउंटिंग सिस्टम होना चाहिए जिससे ऐसे डिपॉजिट को आसानी से फिल्टर किया जा सके जिनकी रिपोर्टिंग करनी है। एसएफटी रिपोर्टिंग का मुख्य उद्देश्य यह जांचना है कि क्या लोग अपने टैक्स रिटर्न में इन लेन-देन का खुलासा कर रहे हैं।
इस मामले में जिन लोगों के नाम पर यह पैसा जमा था उनसे भी अब तेजी से पूछताछ की जाएगी और जांच की जाएगी। एक खास बात यह भी है कि जहां सहकारी बैंकों को हाई-वैल्यू डिपॉजिट की रिपोर्ट एसएफटी के तहत करनी होती है, वहीं सहकारी समितियों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है।
सहकारी बैंकों को शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंक्स की श्रेणी में रखा जाता है और वे आरबीआई और राज्य के सहकारिता विभाग के नियमों के तहत काम करते हैं, जबकि सहकारी समितियां केवल राज्य के सहकारिता विभाग के अधीन आती हैं।
अगर कोई मल्टीस्टेट को-ऑपरेटिव सोसाइटी है तो उस पर राज्य के सहकारिता विभाग का भी कोई नियंत्रण नहीं होता है। हालांकि यह भी सच है कि सहकारी समितियां भी लोगों से डिपॉजिट स्वीकार करती हैं।
सूत्रों की मानें तो अन्य बैंकों पर जल्द ही गाज गिर सकती है। जिस प्रकार विभाग ने एक-एक रजिस्ट्री कार्यालय की छानबीन की है, उसी तर्ज पर अब को-ऑप। बैंक के खिलाफ भी अभियान चलाया जाएगा। यह अभियान पूरे विदर्भ में चलेगा।
विभाग को की पूरी उम्मीद है कि इन बैंकों में भी बड़े पैमाने पर अवैध रूप से लेन-देन की जानकारी सामने आएगी क्योंकि लोग ‘अतिरिक्त आय’ को छिपाने के लिए इन्हीं सहकारी बैंकों का सहारा ले रहे हैं। इन पैसों का इस्तेमाल भी प्रॉपर्टी एवं अन्य डीलिंग में बड़े पैमाने पर की जा रही है।






