
भारत, चीन और रूस के बदलते संबंध (सोर्स-सोशल मीडिया)
Impact of Trump Tariffs on India, China and Russia Relations: डोनाल्ड ट्रंप की दोबारा वापसी के साथ ही अमेरिका की संरक्षणवादी व्यापार नीतियों और भारी टैरिफ ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है। इन नीतियों ने न केवल चीन बल्कि भारत और रूस जैसे देशों के लिए भी नई आर्थिक चुनौतियां पैदा कर दी हैं। अब ये तीनों देश अपने पुराने मतभेदों को किनारे रखकर एक साझा आर्थिक मोर्चे की संभावनाओं को तलाश रहे हैं। इस आर्टिकल में हम इसी बदलते त्रिकोणीय समीकरण और वैश्विक राजनीति पर इसके दूरगामी प्रभावों का गहराई से बात करेंगे।
डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद संभालने के साथ ही ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति को बेहद आक्रामक तरीके से लागू किया है। उन्होंने चीन से आने वाले सामानों पर साठ प्रतिशत तक का भारी टैरिफ लगाया है और भारत जैसे अन्य देशों पर भी दस से बीस प्रतिशत तक का यूनिवर्सल बेसलाइन टैरिफ थोपने की बात कही।
ट्रंप का मानना है कि यह कदम अमेरिकी उद्योगों को बचाएगा लेकिन वास्तव में इसने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को बाधित कर दिया है। इस आर्थिक दबाव ने उन देशों को एक साथ आने के लिए मजबूर किया है जो पहले एक-दूसरे के कड़े प्रतिद्वंद्वी हुआ करते थे। अब भारत और चीन जैसे देश यह समझ रहे हैं कि अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता उनके अपने हितों के लिए नुकसानदेह हो सकती है।
ट्रंप के टैरिफ का सबसे चौंकाने वाला परिणाम भारत और चीन के रिश्तों में आई नई नरमी है। पिछले कुछ वर्षों से सीमा विवाद के कारण दोनों देशों के बीच जो गतिरोध बना हुआ था वह अब व्यापारिक जरूरतों के कारण धीरे-धीरे कम होता दिख रहा है। भारतीय उद्योग जगत को यह एहसास हो रहा है कि चीन से आने वाले कच्चे माल और तकनीक के बिना वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करना कठिन है।
वहीं दूसरी ओर चीन भी अमेरिकी बाजार में अपनी घटती हिस्सेदारी की भरपाई करने के लिए भारत जैसे बड़े बाजार की ओर देख रहा है। यही कारण है कि हाल के महीनों में दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय वार्ताएं तेज हुई हैं और आर्थिक सहयोग के नए रास्ते तलाशे जा रहे हैं।
इस पूरे घटनाक्रम में रूस एक महत्वपूर्ण पुल की भूमिका निभा रहा है। यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस पर लगे पश्चिमी प्रतिबंधों ने उसे पहले ही चीन के करीब ला दिया था। अब ट्रंप के टैरिफ ने भारत को भी रूस और चीन के अधिक करीब जाने का एक वैध कारण दे दिया है। रूस लगातार यह कोशिश कर रहा है कि भारत और चीन के बीच के मतभेद पूरी तरह खत्म हो जाएं ताकि एक मजबूत यूरेशियन ब्लॉक बनाया जा सके।
रूस से मिलने वाला सस्ता तेल और रक्षा सौदे भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और चीन के साथ भारत के व्यापारिक सुधार रूस के रणनीतिक हितों के अनुकूल हैं। रूस अब इन तीनों देशों के बीच ऊर्जा और सुरक्षा के क्षेत्र में एक त्रिपक्षीय गठबंधन को बढ़ावा दे रहा है।
ट्रंप की नीतियों का एक और बड़ा असर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में डॉलर के वर्चस्व पर पड़ रहा है। भारत, चीन और रूस अब अपनी स्थानीय मुद्राओं में व्यापार करने के लिए नए रास्ते बना रहे हैं। ब्रिक्स (BRICS) जैसे संगठन इस दिशा में एक सशक्त माध्यम बनकर उभरे हैं।
ये देश अब एक साझा भुगतान प्रणाली विकसित करने पर काम कर रहे हैं जो पश्चिमी स्विफ्ट (SWIFT) प्रणाली से स्वतंत्र हो। इस कदम का मुख्य उद्देश्य अमेरिकी प्रतिबंधों और टैरिफ की मार से अपने व्यापार को सुरक्षित रखना है। अगर यह प्रयास सफल होता है तो यह वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में एक युगांतकारी बदलाव होगा जिससे अमेरिका की आर्थिक पकड़ कमजोर हो सकती है।
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यह कहा जा सकता है कि ट्रंप के टैरिफ ने अनजाने में ही एक ऐसी बहुध्रुवीय दुनिया की नींव रख दी है जहां अब केवल अमेरिका का आदेश नहीं चलेगा। भारत अपनी संप्रभुता और आर्थिक हितों को सर्वोपरि रखते हुए संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है। वह एक तरफ अमेरिका के साथ तकनीकी सहयोग चाहता है तो दूसरी तरफ चीन और रूस के साथ मिलकर एक स्थिर क्षेत्रीय माहौल बनाना चाहता है।
आने वाले वर्षों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह नया गठबंधन कितना स्थायी रहता है। फिलहाल तो ट्रंप के टैरिफ ने दुनिया के तीन सबसे बड़े खिलाड़ियों को एक ही पाले में लाकर खड़ा कर दिया है जो भविष्य की राजनीति का केंद्र होगा।






