श्मशान घाट (फाइल फोटो)
Bhandara News: जन्म से मृत्यु तक संघर्ष ही मनुष्य का साथी है। यह कहावत भंडारा जिले के कई गांवों में साकार होती नजर आती है। जीवित रहते हुए रोज़मर्रा की परेशानियों से जूझने वाला इंसान मृत्यु के बाद भी सम्मानजनक विदाई से वंचित हो रहा है।
कई जगहों पर परिजन अपने प्रियजन का अंतिम संस्कार खुले मैदान, खेतों, नालों के किनारे अथवा जैसी-तैसी जगह पर करने को विवश हैं। यह दृश्य न केवल दुखदायी है बल्कि मृत आत्मा और उसके परिजनों के लिए अपमानजनक भी प्रतीत होता है। बरसात के मौसम में यह पीड़ा और भी असहनीय हो जाती है। बारिश में चिता जलाना कठिन हो जाता है, गंदगी और कीचड़ से सने रास्तों पर शवयात्रा निकालते समय हर कदम संघर्ष करना पड़ता है।
कहीं श्मशान भूमि है भी, तो वहां छाया के लिए शेड नहीं, न पानी की व्यवस्था और न ही समुचित रास्ते। परिजन घर से पानी लेकर आते हैं और झाड़ियों व कचरे से घिरे स्थान पर अपने प्रिय का अंतिम संस्कार करते हैं। यह दृश्य देखकर हर किसी का मन व्यथित हो उठता है। मोहाडी तहसील के करडी, मोहगांव और निलज गांव के लोग एक ही श्मशान भूमि पर निर्भर हैं। वहीं, पवनी तहसील के सालेवाडा गांव की श्मशान भूमि तक जाने का रास्ता इतना जर्जर है कि शवयात्रा निकालना किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं लगता।
कई गांवों में तो कुछ समाजों के लिए अलग श्मशान भूमि है, लेकिन कुछ समाज आज भी अपने मृतकों को सम्मानजनक विदाई देने के लिए ठिकाना ढूंढते फिरते हैं। नदी किनारे किए जाने वाले अंतिम संस्कार भी खतरे से खाली नहीं। बरसात में जब नदी उफान पर होती है, तब शव बह जाने का डर हर किसी को भयभीत कर देता है। ऐसे दृश्य समाज की संवेदनाओं को गहरे तक झकझोरते हैं।
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आज जरूरत है कि प्रशासन इस गंभीर समस्या को प्राथमिकता दे। नागरिकों की मांग है कि जिला नियोजन समिति हर गांव के लिए व्यवस्थित श्मशान भूमि के लिए जमीन उपलब्ध कराए और इसके विकास के लिए विशेष निधि की व्यवस्था करे। जीवनभर की जद्दोजहद के बाद मनुष्य कम से कम मृत्यु के बाद सम्मानजनक विदाई का अधिकारी है। यदि प्रशासन समय रहते ठोस कदम उठाए, तो हर अंतिम यात्रा गरिमा और शांति के साथ पूरी हो सकेगी – यही एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।