धान मिलिंग के नाम पर 'घोटाला' (सौजन्यः सोशल मीडिया)
भंडारा: जिले के गोंडउमरी स्थित महावीर राइस मिल में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यह राइस मिल पूरे वर्ष बंद पड़ी थी, फिर भी इस मिल से सरकार के अन्न व आपूर्ति विभाग को 11,658 क्विंटल चावल जमा किया गया। हैरानी की बात यह है कि वित्तीय वर्ष 2023-24 में मिल का बिजली बिल शून्य रहा, यानी चावल पॉलिश करने के लिए एक भी यूनिट बिजली खर्च नहीं की गई। फिर इतने बड़े पैमाने पर चावल कहां और कैसे तैयार हुआ, इस पर अब सवाल खड़े हो रहे हैं। बता दें कि सरकारी खरीदी केंद्रों से खरीदा गया धान, मान्यता प्राप्त और सक्रिय राइस मिलों को चावल बनाने के लिए भेजा जाता है।
नियम के अनुसार, सिर्फ चालू अवस्था में काम कर रही मिलों से ही अनुबंध किया जा सकता है, और हर महीने का बिजली बिल प्रस्तुत करना अनिवार्य होता है। लेकिन महावीर राइस मिल, जिसने 2023-24 में एक भी यूनिट बिजली खर्च नहीं की, फिर भी 11,658 क्विंटल चावल जमा किया, यह दर्शाता है कि कुछ तो गड़बड़ है। इतना चावल कहां और किसने तैयार किया? इस पर अब संशय गहराता जा रहा है। जांच में सामने आया मिल बंदइस मामले के बाद 14 और 16 जून को जिला आपूर्ति व पणन अधिकारियों ने संयुक्त रूप से मिल का निरीक्षण किया।
14 जून को मिल पूरी तरह बंद पाई गई। 16 जून को मिल अस्थायी रूप से चालू की गई थी। उस समय कुछ मजदूर और कर्मचारी मौजूद थे और चावल बनाकर दिखाया गया, लेकिन सीसीटीवी फुटेज की जांच नहीं की गई। सबसे अहम बात यह है कि 2025 में भी इस मिल के साथ फिर से अनुबंध किया गया, जबकि बिजली खपत फिर भी दर्ज नहीं है। यह दिखाता है कि यह मिल कई वर्षों से बंद होते हुए भी अनुबंध प्राप्त करती रही है। प्रशासन को गुमराह करने की साजिश? यह मामला दर्शाता है कि मिल मालिक और विभागीय अधिकारी आपसी मिलीभगत से शासन को गुमराह कर रहे हैं।
इससे न सिर्फ सरकार को आर्थिक नुकसान होता है, बल्कि धान बेचने वाले किसानों के हक पर भी असर पड़ता है। आशंका है कि ऐसे ही मामले अन्य मिलों में भी हो सकते हैं, इसलिए इस पूरे प्रकरण की गहन जांच और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग तेज हो गई है।14 जून को गोंडउमरी स्थित संबंधित राइस मिल का निरीक्षण किया गया, जहां मिल बंद पाई गई. इसके बाद 16 जून को दोबारा दौरा करने पर मिल चालू अवस्था में मिली। इस निरीक्षण के दौरान जिला आपूर्ति अधिकारी की उपस्थिति में धान की पिसाई करके उसमें से वास्तविक चावल निकालकर दिखाया गया। उसी समय पंचनामा भी किया गया,
हालांकि सीसीटीवी फुटेज की जांच नहीं की गई। निरीक्षण के समय 4 हमाल और 3 कर्मचारी मिल में मौजूद थे। मिल का विद्युत बिल पिछले वर्ष के दो महीनों का ही उपलब्ध है, जबकि मई 2025 के अंत में उक्त मिल को धान की आपूर्ति की गई थी। मिल मालिक ने स्वीकार किया है कि जून 2025 में धान की पिसाई कर चावल जमा किया गया है। इस मिल को चार डीओ (डिलीवरी ऑर्डर) के तहत धान की आपूर्ति की गई थी, जिसे नियमानुसार 20 दिनों के भीतर चावल के रूप में जमा करना अनिवार्य है।
धान की खरीद के बदले में मिल मालिक से 40 लाख रुपये की अग्रिम राशि प्राप्त की गई है। संभाजी चंद्रे, जिला पणन अधिकारी, भंडारा.पिछले सीजन में जिन राइस मिल मालिकों का बिजली बिल अत्यंत कम आया था, उन सभी पर जिला पणन अधिकारी कार्यालय ने प्रति मिल 25,000 का जुर्माना लगाया था। शासन निर्णय के अनुसार, धान की मिलिंग करते समय प्रति क्विंटल 0.8 यूनिट बिजली खर्च होना अनिवार्य रूप से प्रमाणित किया जाना चाहिए। यदि यह पाया गया कि बिजली का उपयोग इस मानक के अनुसार नहीं हुआ है, तो ऐसी राइस मिलों को न तो मिलिंग का भुगतान किया जाएगा और न ही परिवहन खर्च अदा किया जाएगा।
भंडारा जिला आपूर्ति अधिकारी नरेश वंजारी ने कहा कि यह बात स्पष्ट रूप से शासन के निर्देशों में उल्लेखित है। बिजली बिलों की जांच करने की जिम्मेदारी जिला पणन अधिकारी की होती है। इसके अलावा, डीएमओ कार्यालय की ओर से धान की मिलिंग कर, ग्राहक मिल्ड राइस (CMR) शासन को सौंपना अपेक्षित है। इसके बाद की प्रक्रिया जिला आपूर्ति विभाग के अधीन आती है। गोंडउमरी स्थित संबंधित राइस मिल का जब प्रत्यक्ष निरीक्षण किया गया, तो वहां लगभग 1 लाख मूल्य का धान जमा पाया गया। हालांकि, संबंधित मिल को अब तक सीएमआर से संबंधित कोई नया आदेश जारी नहीं किया गया है।