
प्लास्टिक रस्सी (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Bhandara News: भंडारा जिले के ग्रामीण भागों में धान कटाई के मौसम में तनस (धान के डंठल) से बनाए जाने वाले बंध के पारंपरिक व्यवसाय से सैकड़ों परिवारों को हर वर्ष रोजगार मिलता था। लेकिन अब सस्ते, हल्के और आसानी से उपलब्ध प्लास्टिक की पट्टियों ने इस पारंपरिक ग्रामीण व्यवसाय को लगभग समाप्त कर दिया है। धान कटाई का मौसम शुरू होते ही शहर और गांवों में प्लास्टिक बैनर की पट्टियों से बने बंध बेचने वाले व्यापारी सक्रिय हो जाते हैं। इसके चलते तनस से तैयार पारंपरिक बंधों की मांग में भारी गिरावट आई है।
धान कटाई के बाद धान के गट्ठे बांधने के लिए तनस से तैयार बंधों का उपयोग किया जाता था। यह पूरी तरह पर्यावरण अनुकूल और जैविक रूप से विघटनशील होते हैं। ग्रामीण मजदूर, महिलाएं और बुजुर्ग सभी इस काम में हिस्सा लेते थे। तनस सुखाना, बुनाई करना, तैयार करना और बाजार में बेचना यह सब एक मेहनतभरा लेकिन लाभदायक कार्य होता था। लगभग 100 बंध तैयार करने में एक दिन का श्रम लगता था। इससे सैकड़ों परिवारों की आजीविका चलती थी और यह ग्रामीण संस्कृति का अभिन्न हिस्सा था।
पिछले कुछ वर्षों से धान के गट्ठे बांधने में प्लास्टिक की पट्टियों का उपयोग बढ़ गया है। ये पट्टियां प्रायः फेंके गए बैनरों से बनाई जाती हैं। एक किलो प्लास्टिक पट्टी से सौ से अधिक बंध तैयार किए जा सकते हैं। इसके कारण पारंपरिक तनस बंध विक्रेताओं को बाजार में प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो गया है। प्लास्टिक बंध सस्ते और आसानी से उपलब्ध हैं, इसलिए किसान इनकी ओर झुक रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप तनस बंधों की मांग घट रही है और ग्रामीण रोजगार पर गहरा असर पड़ रहा है।
लाखांदुर तहसील के पालेपेंढरी और पाचगांव जैसे गांवों में पहले लगभग हर परिवार यह काम करता था। इस हंगामी रोजगार से लोग दिवाली जैसे त्योहार आनंदपूर्वक मनाते थे, लेकिन अब कई परिवारों की यह आय समाप्त हो गई है। प्लास्टिक बंध जहां पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, वहीं तनस बंध पर्यावरण के लिए लाभदायक होते हैं। ये खेत में सड़कर खाद का काम भी करते हैं। दूसरी ओर, प्लास्टिक पट्टियां खेतों में फेंक दी जाती हैं और वर्षों तक विघटित नहीं होतीं, जिससे मिट्टी की उर्वरता घटती है और प्रदूषण बढ़ता है।
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यदि सरकार तनस बंध उद्योग को प्रोत्साहन दे जैसे अल्प व्याज दर पर ऋण, प्रशिक्षण और विपणन सुविधा तो यह पारंपरिक उद्योग फिर से फले-फूलेगा। प्लास्टिक पट्टियों ने जो रोजगार छीना है, वह सिर्फ एक व्यवसाय नहीं बल्कि ग्रामीण संस्कृति और पर्यावरणीय संतुलन का प्रतीक है। इस लुप्तप्राय व्यवसाय को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए जाएं, तो इससे न केवल रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, बल्कि पर्यावरण की रक्षा भी होगी।






