
चुनाव प्रचार में वादे बड़े, विजय गायब, मतदाता सवाल पूछ रहे (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Urban development Issues Bhandara: भंडारा नगर परिषद चुनाव का प्रचार तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन शहर के समग्र विकास को लेकर किसी भी पार्टी के पास स्पष्ट और ठोस विज़न दिखाई नहीं दे रहा है। नेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने में व्यस्त हैं, जबकि शहर की वास्तविक समस्याओं और अपूर्ण परियोजनाओं पर कोई गंभीरता से ध्यान नहीं दे रहा। यही कारण है कि मतदाताओं में नाराज़गी लगातार बढ़ रही है और वे इस बार वादों के बजाय कामकाज की विश्वसनीयता को कसौटी पर परखने के बाद ही निर्णय लेने के मूड में हैं।
भंडारा नगर परिषद की स्थापना वर्ष 1867 में हुई थी और यह जिले की सबसे पुरानी नगर परिषदों में से एक है। शहर में 17 प्रभाग हैं तथा नगराध्यक्ष और 35 नगरसेवक पदों के लिए कड़ा मुकाबला चल रहा है। शहर की सबसे प्रमुख समस्याएँ अतिरिक्त जलापूर्ति योजना और भूमिगत सीवर परियोजना पिछले छह वर्षों से अधूरी पड़ी हैं। कई इलाकों में सड़कें खोदी हुई हैं और पानी की सप्लाई समय पर नहीं मिलती। गर्मियों में स्थिति और अधिक विकट हो जाती है।
उद्यान निर्माण, सौंदर्यीकरण, स्कूलों का आधुनिकीकरण, सार्वजनिक शौचालय, खेल मैदान और नाट्यगृह जैसे कार्य वर्षों से रुके पड़े हैं। शहर में पार्किंग व्यवस्था बुरी तरह अव्यवस्थित है और फेरीवालों के पुनर्वास का मुद्दा भी आज तक अनसुलझा है। महिलाओं के लिए सुरक्षित सार्वजनिक शौचालयों की संख्या भी बेहद कम है। नागरिकों का कहना है कि अब उन्हें घोषणाएँ नहीं, बल्कि पूर्ण किए गए कार्य चाहिए। इस बार मतदाता केवल आश्वासनों से प्रभावित होने वाले नहीं हैं। वे क्रियान्वयन को प्राथमिकता दे रहे हैं।
चुनावी घोषणापत्रों में कई पार्टियाँ बड़े-बड़े सपने दिखा रही हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं करतीं कि योजनाएँ कैसे लागू होंगी, बजट कहाँ से आएगा और समयसीमा क्या होगी। प्रचार सभाओं और सोशल मीडिया पर उम्मीदवार एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने में व्यस्त हैं, जबकि असली मुद्दे पीछे छूटते जा रहे हैं। नगराध्यक्ष पद के दावेदारों में संघर्ष कड़ा है, लेकिन मतदाताओं के मन में केवल एक सवाल गूंज रहा है। शहर का वास्तविक विकास कौन करेगा?
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भंडारा शहर विकास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। इस चुनाव में जीत से अधिक महत्वपूर्ण यह है कि शहर का दीर्घकालीन विकास किसके नेतृत्व में संभव होगा। इसलिए इस बार आश्वासनों की नहीं, बल्कि किए गए कार्यों की गिनती ही मतदान का आधार बनने वाली है।






