असली रंग में निखरेगा प्राचीन सोनेरी महल (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Chhatrapati Sambhajinagar: शहर में स्थित डॉ. बाबासाहब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय क्षेत्र में सोनेरी महल प्राचीन वास्तुकला का अद्भुत नमूना माना जाता है। बौद्ध गुफाएं देखने आने वाले सैलानी इस वास्तु को भी देखने जरूर आते हैं। इतिहास प्रेमियों व सैलानियों को हमेशा आकर्षित कर रही इमारत समय के साथ जर्जर हो गई थी, मगर यह ऐतिहासिक वास्तु अब शीघ्र ही अपने मूल स्वरूप में चमकने जा रही है।
3 करोड़, 93 लाख, 23, 850 रुपए की लागत से इसका रखरखाव, मरम्मत और वाटरप्रूफिंग का कार्य तेजी से जारी है। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो यह कार्य पूर्ण होने में एक से डेढ़ वर्ष का समय लग सकता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, बुंदेलखंड के राजा पहाड़सिंह ने मुगल काल में सोनेरी महल का निर्माण किया था। जर्जर अवस्था के चलते इस महल का मरम्मत कार्य पारंपरिक प्राचीन तरीके से किया जा रहा है।
चूना, उड़द की दाल और गन्ने के छिलके जैसी सामग्री उपयोग में ली जा रही है, जिसका प्रयोग सन 1651 से 1653 के बीच निर्माण के समय हुआ था। इस काम के लिए क्षेत्र में तीन बड़े हौज तैयार किए गए हैं। करीब 150 मजदूर व कुशल कारीगर दिन-रात इस काम में जुटे हैं। पुरातत्व विभाग की सहायक निदेशक जया वाहने ने कहा कि, उनको कोशिश इसे मूल स्वरूप में पर्यटकों के सामने पेश करने की है।
जया वाहने ने कहा कि, दीवारों पर की गई सुवर्ण पेंटिंग से इसे सोनेरी महल कहा जाता है। प्रवेश पर बना विशाल दरवाजा हाथीखाना के नाम से परिचित है। मुगल काल के बगीचे में फव्वारों के सामने आयताकार, दो मंजिला व ऊंचे चबूतरे पर बनी इस इमारत का पूरा निर्माण पत्थर, ईंट व चूने से हुआ है। महल में 17वीं से 19वीं सदी के हथियारों का एक कमरा है।
हिंदू देवताओं के लकड़ी व कांच पर चित्रित चित्रों का एक सुंदर संग्रह है। अंतिम भाग हिंदू व जैन धर्म के विभिन्न देवताओं की मूर्तियों की एक श्रृंखला पेश करता है। इस कमरे में एलोरा से लाया गया 18वीं शताब्दी का एक बड़ा लकडी का मंदिर है जिसमें गणेश की तीन सिरों वाली मूर्ति है। निचली मंजिल में स्तंभों वाला दालान व चार कमरे हैं। वहीं, ऊपर की मंजिल में बीच में दालान व चार कोनों पर कमरे बने हैं। सबसे ऊपर निगरानी मीनार है, इमारत पर नक्काशीदार मेहराबें इसकी सुंदरता को और बढ़ाती हैं।