लैंडलाइन फोन (सौ. सोशल मीडिया )
Akola News In Hindi: कुछ दशक पहले घर में टेलीफोन होना सामाजिक प्रतिष्ठा और संपन्नता का प्रतीक माना जाता था। उस दौर में टेलीफोन से बात करने के लिए पड़ोसियों की भी कतारें लगती थीं। लैंडलाइन फोन की घंटी बजते ही घर के सदस्य दौड़ पड़ते थे यह देखने कि किसका कॉल आया है।
कई बार यह कॉल पड़ोसी के लिए होता और टेलीफोन मालिक को ही संदेश देने को कहा जाता। उस समय टेलीफोन नंबर बताना गर्व की बात होती थी। लेकिन समय के साथ तकनीक ने टेलीफोन की जगह मोबाइल को दे दी है। आज आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के साथ साथ अमीरों तक हर किसी के हाथ में मोबाइल है। मोबाइल की सुविधाओं और सेवा प्रदाताओं की प्रतिस्पर्धा ने इसे आमजन की पहली पसंद बना दिया है। नतीजतन, पारंपरिक लैंडलाइन अब घरों में दिखावट की वस्तु बन चुकी है। हालांकि कुछ लोगों ने अब भी लैंडलाइन को सहेज कर रखा है।
बीएसएनएल पर सरकारी कार्यालयों का भरोसा अब भी कायम है। अधिकांश सरकारी दफ्तरों और बैंकों में आज भी लैंडलाइन फोन बजते हैं। हालांकि, इन कार्यालयों ने पारंपरिक कॉपर ऑप्टिक्स को फाइबर ऑप्टिक्स में बदल दिया है, जिससे सेवा अधिक सुगम हो गई है। इंटरनेट युग में फाइबर की मांग भी तेजी से बढ़ी है।
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वर्ष 2013 के आसपास जिले में लगभग 8,000 लैंडलाइन धारक थे। इनमें से लगभग 3,000 ने अपनी सेवा को फाइबर में परिवर्तित कर लिया है, जबकि लगभग 2,000 लैंडलाइन आज भी सक्रिय हैं। वहीं, करीब 3,000 लैंडलाइन बंद हो चुके हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि कैसे मोबाइल ने लैंडलाइन को धीरे-धीरे पीछे छोड़ दिया है। आज के डिजिटल युग में जहां हर हाथ में मोबाइल है, वहीं लैंडलाइन की घंटी अब केवल सरकारी दफ्तरों तक सीमित रह गई है। यह बदलाव आधुनिक तकनीक की गति और जनसामान्य की बदलती प्राथमिकताओं को दर्शाता है।