
(प्रतीकात्मक तस्वीर)
Akola Municipal Corporation Election 2026: अकोला महानगरपालिका (NMC) चुनाव के लिए नामांकन का बिगुल बज चुका है, लेकिन चुनावी मैदान में उतरने को तैयार उम्मीदवारों के बीच भारी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। राज्य की सत्ता पर काबिज ‘महायुति’ और विपक्षी ‘महाविकास आघाड़ी’ (MVA) के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर अभी तक स्थिति साफ नहीं हो पाई है। इसके चलते कई दिग्गज नेता और पूर्व पार्षद अपनी दावेदारी को लेकर ‘वेट एंड वॉच’ की मुद्रा में हैं।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भाजपा इस बार अकोला में बड़े भाई की भूमिका निभाना चाहती है। पिछले मनपा चुनाव में भाजपा ने 48 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार पार्टी ने 50 से अधिक सीटों पर अपनी दावेदारी पेश की है। भाजपा की इस आक्रामक मांग के कारण महायुति के अन्य सहयोगियों- शिवसेना (शिंदे गुट) और राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजीत पवार गुट) के साथ तालमेल बिठाना कठिन हो रहा है। यही वजह है कि अभी तक गठबंधन का कोई आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ है।
चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवारों में भारी उत्साह तो है, लेकिन उनके मन में यह डर भी सता रहा है कि यदि गठबंधन हुआ, तो उनकी सुरक्षित सीट सहयोगी पार्टी के खाते में जा सकती है। इसी डर के कारण कई नेता अभी तक खुलकर प्रचार में नहीं उतरे हैं। उम्मीदवारों का ध्यान केवल इस ओर लगा है कि कब संबंधित पार्टी आलाकमान उनकी उम्मीदवारी पर मुहर लगाए।
इस बार अकोला मनपा चुनाव में एक नया मोड़ भी देखने को मिल रहा है। महायुति और महाविकास आघाड़ी के अलावा एक ‘तीसरा मोर्चा’ भी उभरता हुआ दिख रहा है। इसमें मुख्य रूप से वे पूर्व पार्षद और पदाधिकारी शामिल हैं जो अपनी पार्टियों से नाराज चल रहे हैं या जिन्हें टिकट कटने की आशंका है। यह तीसरा मोर्चा बड़े राजनीतिक दलों के चुनावी समीकरण को बिगाड़ने की क्षमता रखता है।
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उम्मीदवारों के बीच एक दिलचस्प रुझान यह देखा जा रहा है कि वे विचारधारा से ज्यादा प्रभाग के समीकरणों को महत्व दे रहे हैं। जिस प्रभाग या बस्ती में जिस राजनीतिक दल का प्रभाव अधिक है, इच्छुक उम्मीदवार उसी पार्टी का टिकट पाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। अकोला के चुनावी रण में अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि गठबंधन की तस्वीर कब साफ होती है और नामांकन के आखिरी दिनों में क्या राजनीतिक फेरबदल देखने को मिलता है।






