
प्रतीकात्मक तस्वीर ( सोर्स :सोशल मीडिया )
Nashik Smart City Bombay High Court: नाशिक की जीवनदायिनी गोदावरी नदी को प्रदूषण मुक्त करने के प्रयासों में हो रही लापरवाही पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने बेहद सख्त रुख अख्तियार किया है। साल 2018 में अदालत द्वारा दिए गए ऐतिहासिक निर्देशों की खुलेआम अनदेखी करने पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है।
याचिकाकर्ता निशिकांत पगारे द्वारा दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने नाशिक महानगरपालिका, एमआईडीसी (MIDC), स्मार्ट सिटी प्रशासन, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पुलिस विभाग को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
इन सभी विभागों को अब 7 जनवरी तक हलफनामा (Affidavit) देकर कोर्ट को यह समझाना होगा कि आखिर 6 साल बीत जाने के बाद भी आदेशों का पालन क्यों नहीं हुआ, याचिकाकर्ता ने कोर्ट के सामने साक्ष्यों के साथ यह बात रखी कि कैसे नदी के प्राकृतिक स्वरूप के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
अदालत ने पूर्व में स्पष्ट कहा था कि नदी के पात्र में कंक्रीट का उपयोग वर्जित है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है- रामवाड़ी पुल के पास ‘गोदा पार्क’ के नाम पर और अहिल्यादेवी होलकर पुल के नीचे स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत धड़ल्ले से कंक्रीट की दीवारें और मैकेनिकल गेट बनाए गए हैं।
शहर के गंदे नालों को नदी से अलग करने (Diver sion) का काम वर्षों से कछुआ गति से चल रहा है, जिससे आज भी गंदा पानी सीधे गोदावरी में मिल रहा है। औद्योगिक कचरे को साफ करने के लिए ‘कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट’ (CETP) का निर्माण अब तक फाइलों से बाहर नहीं निकल पाया है।
अदालत ने नदी के संरक्षण के लिए एक विशेष सुरक्षा तंत्र बनाने का आदेश दिया था, ताकि कचरा फेंकने वालों और प्रदूषण फैलाने वालों पर लगाम लग सके। लेकिन प्रशासन ने इस सुरक्षा कवच को भी नजरअंदाज कर दिया कोर्ट के आदेशानुसार 1 पुलिस निरीक्षक, 4 उपनिरीक्षक और 30 कांस्टेबलों की तैनाती होनी थी, लेकिन याचिकाकर्ता का आरोप है कि यह बल धरातल पर कहीं नजर नहीं आता। स्मार्ट सिटी के नाम पर किए गए कतिपय निर्माणों ने नदी के बहाव को संकुचित कर दिया है।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति संदेश पाटिल की खंडपीठ ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। यदि संबंधित विभाग 7 जनवरी तक संतोषजनक जवाब और अनुपालन रिपोर्ट पेश नहीं करते हैं, तो जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ ‘अवमानना की कार्रवाई’ (Contempt of Court) शुरू की जा सकती है।
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कोर्ट ने साफ कर दिया है कि गोदावरी की पवित्रता के साथ किसी भी प्रकार का समझौता बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस महत्वपूर्ण कानूनी लड़ाई में याचिकाकर्ता निशिकांत पगारे की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता तेजस दंडे, सत्यजित सालवे और विनायक शेलार ने पैरवी की। उन्होंने कोर्ट को बताया कि प्रशासन की सुस्ती के कारण गोदावरी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है और 2018 के आदेशों का पालन केवल कागजों तक सीमित रह गया है।






