
दो जून की रोटी का मतलब (सोशल मी़डिया)
जून महीने की 2 तारीख सोशल मीडिया पर हर साल ‘2 जून की रोटी’ ट्रेंड होने लगता है। हम सब अक्सर ही सुनते आए हैं कि जिंदगी में ज्यादा कुछ नहीं चाहिए, बस सुकून से 2 जून की रोटी मिल जाए। यही काफी है।
जानकारों के अनुसार, सरकारें कई दशकों से गरीबी हटाने की योजनाएं लेकर आ रही है मगर आज भी लाखों लोग हमारे देश में ऐसे हैं जिन्हें 2 जून की रोटी नसीब नहीं है। साल 2017 में आए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार, देश में 19 करोड़ लोगों को भरपेट भोजन उपलब्ध नहीं है। ऐसे में आइए जानें 2 जून की रोटी का मतलब क्या है। सोशल मीडिया पर यह ट्रेंड क्यों हो रहा होता है।
1- प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2 जून की रोटी एक कहावत है और इसका मतलब 2 वक्त के खाने से होता है। अवधि भाषा में ‘जून’ का मतलब ‘वक्त’ अर्थात, समय से होता है।
2- इसलिए पूर्व में लोग इस कहावत का इस्तेमाल दो वक्त यानी सुबह-शाम के खाने को लेकर करते थे। इससे उनका मानना था कि गरीबी में 2 वक्त का खाना भी मिल जाये वही काफी होता है।
जानकारों का मानना है कि, कृषि प्रधान देश होने के बावजूद देश में कई लोग ऐसे हैं, जिनको दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो पाती है। हालांकि, इन गरीबों के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है और लाखों-करोड़ों रुपये खर्च भी कर रही है। कोरोना काल के बाद से केंद्र की मोदी सरकार गरीबों के लिए मुफ्त अनाज भी उपलब्ध करा रही है, जिससे 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को फायदा हो रहा है।
आज भी माता-पिता अपने बच्चों को अन्न का अनादर न करने के लिए इस कहावत का इस्तेमाल करते हैं। बच्चों को खाने को बर्बाद करने से रोकने के लिए कहा जाता है कि आजकल लोगों को दो जून की रोटी ही मिल जाए बड़ी बात होती है और कुछ लोग खाना बर्बाद कर रहे हैं। ज्यादातर, उत्तर भारत में इस कहावत का इस्तेमाल किया जाता है। लेखिका- सीमा कुमारी






