
मोहन भागवत (सौजन्य-IANS)
Mohan Bhagwat News: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि भारत के लिए अब जीने का समय है, मरने का नहीं। यह बात उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर की 115वीं वर्षगांठ पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही। भागवत ने देशभक्ति पर बल देते हुए कहा कि देश में ‘तेरे टुकड़े होंगे’ जैसी भाषा नहीं होनी चाहिए। उन्होंने जाति और धर्म के आधार पर होने वाले विभाजन को गलत ठहराते हुए कहा कि सावरकर ने हमेशा एक राष्ट्र की सोच को आगे बढ़ाया। भागवत ने स्वार्थ से ऊपर उठकर देश को सर्वोपरि रखने की बात कही, ताकि भारत ‘विश्व गुरु’ बन सके। इस कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित कई प्रमुख हस्तियां मौजूद थीं।
मोहन भागवत ने विनायक दामोदर सावरकर के गीत ‘सागर प्राण तलमाला’ की 115वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्र को सर्वोपरि रखने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “यह भारत के लिए जीने का समय है, न कि इसके लिए मरने का।” भागवत ने सावरकर को उनकी देशभक्ति के लिए याद करते हुए कहा कि हमारे देश में अपने ही देश की भक्ति होनी चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि देश में ऐसी भाषा के लिए कोई जगह नहीं है जो राष्ट्र को तोड़ने की बात करे, जैसे ‘यहां तेरे टुकड़े होंगे’।
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि छोटे-छोटे मुद्दों पर होने वाले टकराव आज की सोच को दर्शाते हैं। एक महान राष्ट्र के निर्माण के लिए हमें सावरकर के संदेश को याद रखना होगा और उसे जन-जन तक पहुंचाना होगा। उन्होंने जाति और धर्म के आधार पर होने वाले विभाजन का जिक्र करते हुए कहा कि सावरकर जी ने कभी यह नहीं कहा कि वे केवल महाराष्ट्र से हैं या किसी खास जाति से जुड़े हैं। उन्होंने हमेशा एक राष्ट्र की विचारधारा को बढ़ावा दिया। हमें अपने देश को ऐसे सभी टकरावों से ऊपर रखना चाहिए और यह विश्वास बनाए रखना चाहिए कि हम सब भारत हैं।
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भागवत ने इस बात पर भी जोर दिया कि हर व्यक्ति का योगदान अहम है। उन्होंने एक छोटी गिलहरी का उदाहरण दिया, जिसने वानर सेना के साथ मिलकर राम सेतु निर्माण में अपना योगदान दिया था। उन्होंने कहा कि स्वार्थ को दूर रखकर ही हम सावरकर के सपने को साकार कर सकते हैं। सावरकर ने नि:स्वार्थ भाव से भारत के लिए कार्य किया था। हमें जो भी करना चाहिए, वह अपने राष्ट्र के हित में करना चाहिए और तभी हम भारत को ‘विश्व गुरु’ बना सकते हैं।






