
मुंबई: सनातन परंपरा में रविवार का दिन भगवान सूर्यदेव को समर्पित माना जाता है। मान्यता है कि सूर्यदेव ही समस्त जगत के प्रकाश और ऊर्जा के स्रोत हैं। इसलिए लोग अपने जीवन में सुख, समृद्धि, सफलता और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति के लिए हर दिन या रविवार को सूर्य को जल अर्पित (अर्घ्य) करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, व्यक्ति की कुंडली में सूर्य की स्थिति उसके जीवन में सम्मान, यश और आत्मविश्वास का निर्धारण करती है। यदि सूर्य बलवान हो, तो जीवन में सफलता और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, जबकि कमजोर सूर्य कई बाधाओं का कारण बनता है। इसलिए सूर्य देव की कृपा पाने के लिए सुबह-सुबह जल अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, अर्घ्य हमेशा तांबे के लोटे से देना शुभ रहता है। लोटे में शुद्ध जल भरें और उसमें लाल चंदन, सफेद तिल, लाल पुष्प और पीले अक्षत (चावल) डालें। इसके बाद पूर्व दिशा की ओर मुख करके, दोनों हाथों को सिर की ऊंचाई तक उठाते हुए धीरे-धीरे जल अर्पित करें। कोशिश करें कि गिरते हुए जल के बीच से ही सूर्य देव के दर्शन करें।
आजकल कई लोग तांबे के अलावा पीतल, चांदी या मिट्टी के लोटे का उपयोग करते हैं – ये सभी स्वीकार्य हैं। लेकिन स्टील के बर्तन से जल अर्पित करना अशुभ माना जाता है। अर्घ्य देने से पहले लोटे को अच्छी तरह साफ करना चाहिए। यदि संभव हो तो इसे साबुन की जगह भस्म (राख) से स्वच्छ करें, यह अधिक पवित्र माना जाता है।
ज्योतिषियों का कहना है कि जब कोई व्यक्ति प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य देता है, तो उससे निकलने वाली किरणें शरीर में नई ऊर्जा का संचार करती हैं। इससे कई रोग और संक्रमण दूर होते हैं और शरीर में ताजगी बनी रहती है।
अर्घ्य देते समय लोटे को सिर के ऊपर ऊंचाई पर रखें, ताकि जल की एक संगठित धारा बने। सूरज की किरणें जब उस जल से होकर आपके शरीर पर पड़ती हैं, तो वह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी मानी जाती हैं। साथ ही, जल की धारा के बीच से ही सूर्य के दर्शन करने का प्रयास करें।
कई लोग उस दौरान आंखें बंद कर लेते हैं, लेकिन यह गलत माना गया है। अर्घ्य देते समय आंखें खुली रखनी चाहिए और मन में सूर्यदेव का ध्यान करना चाहिए।






