मुंबई हाईकोर्ट (pic credit; social media)
Mira-Bhayander Development Plan: मीरा-भाईंदर विकास योजना (RDDP) को लेकर मुंबई हाईकोर्ट ने बड़ा आदेश दिया है। अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को साफ निर्देश दिया है कि नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की आपत्तियों और सुझावों को गंभीरता से सुना जाए।
योजना में जरूरी बदलाव करते हुए 30 नवंबर 2025 तक अंतिम निर्णय लिया जाए। यह आदेश सामाजिक कार्यकर्ता विकास सिंह, अमित शमा और राकेश राजपुरोहित की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया गया।
याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि मीरा-भाईंदर महानगरपालिका और राज्य प्रशासन ने नागरिकों की आपत्तियों और सुझावों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। उनका कहना है कि योजना सिर्फ 20 लाख की आबादी को ध्यान में रखकर बनाई गई है, जबकि फिलहाल आबादी 13 लाख है और आने वाले समय में यह 30 लाख तक पहुंच सकती है। यानी भविष्य की जरूरतों को योजना में शामिल ही नहीं किया गया।
योजना में सड़कें, मेट्रो स्टेशन, ट्रॉमा सेंटर, पार्किंग, स्कूल, अस्पताल, पुलिस मुख्यालय, हेलीपैड, मैदान, श्मशान और कब्रिस्तान जैसी बुनियादी सुविधाओं की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि प्रशासन में पारदर्शिता की कमी है और बार-बार देरी कर नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है।
न्यायमूर्ति एस.सी. घुगे और न्यायमूर्ति अश्विन बीचे ने सुनवाई के दौरान कहा कि नगर नियोजन केवल प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह नागरिक अधिकारों और लोकतंत्र की रक्षा से जुड़ा मुद्दा है। कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि नागरिकों के सुझावों पर गंभीरता से विचार किया जाए, अन्यथा विकास योजना अधूरी और अव्यवहारिक रह जाएगी।
अब सबकी निगाहें महाराष्ट्र सरकार के फैसले पर टिकी हैं। शहर के प्रबुद्ध नागरिकों का कहना है कि अगर नागरिकों की भागीदारी और जरूरी संशोधन नहीं हुए तो मीरा-भाईंदर का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। हाईकोर्ट का यह आदेश प्रशासन के लिए कड़ी चेतावनी माना जा रहा है कि विकास योजना पर मनमानी नहीं चलेगी।