दीनदयाल उपाध्याय (फोटो- सोशल मीडिया)
Deendayal Upadhyay Jayanti: पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय राजनीति के एक युग पुरुष के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने देश के नेताओं को स्पष्ट संदेश दिया कि राजनीति और सत्ता का उद्देश्य ऐश-ओ-आराम हासिल करना नहीं, बल्कि जनता की सेवा करना है। उनका जीवन सादगी और समर्पण का उदाहरण था, लेकिन उनकी मौत आज भी एक रहस्य बनी हुई है।
उनकी मृत्यु को लेकर कई सवाल आज भी अनसुलझे हैं, जिनके जवाब 57 सालों की लंबी सीबीआई जांच, गिरफ्तारियों और सबूतों के बावजूद भी नहीं मिल सके। ऐसी स्थिति में कोई अपराधी सजा से बचा रहा। आइए, उनकी जयंती के मौके पर हम उनके जीवन, मृत्यु, जांच प्रक्रिया और अदालत के फैसलों के बारे में विस्तार से जानें।
जनसंघ नेताओं का साथ दीनदयाल उपाध्याय (फोटो- सोशल मीडिया)
दीनदयाल उपाध्याय दिल्ली से पटना जाने के लिए “सीमांचल एक्सप्रेस” ट्रेन में सवार हुए थे। वे उस समय भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष चुने गए थे और बिहार में होने वाली बैठक के लिए जा रहे थे। बताया जाता है कि यात्रा के दौरान वे पूरी रात चैन से सो नहीं पाए। कभी खिड़की के पास बैठ जाते, कभी बर्थ पर करवटें बदलते। सुबह लगभग 4 बजे ट्रेन जब उत्तर प्रदेश मुगलसराय स्टेशन के पास पहुँची, तो उनका शव पटरियों पर मिला।
दीनदयाल उपाध्याय (फोटो- सोशल मीडिया)
उनकी जेब से सिर्फ 5 रुपये और एक ट्रेन का टिकट मिला। यह दृश्य देशभर में सनसनी फैला गया। जनसंघ और समर्थकों ने साफ कहा कि यह हत्या है, जबकि आधिकारिक जाँचों में इसे कई बार दुर्घटना भी बताया गया।
सागदी के प्रतीक दीनदयाल उपाध्याय (फोटो- सोशल मीडिया)
घटना के बाद तत्कालीन सरकार ने जाँच बिठाई। कई लोगों को संदिग्ध माना गया, कुछ गिरफ्तारियाँ भी हुईं। एक व्यक्ति वसंत राम को दोषी ठहराया गया, लेकिन अदालत में पर्याप्त सबूत न होने के कारण उसे बरी कर दिया गया।
जनसंघ नेताओं का आरोप था कि यह एक “राजनीतिक हत्या” थी। दीनदयाल की लोकप्रियता और वैचारिक मजबूती उस दौर की राजनीति में कई लोगों को असहज कर रही थी। लेकिन सीबीआई और बाद की जाँच समितियों में हत्यारों की संलिप्तता साबित नहीं हो सकी।
दीनदयाल उपाध्याय (फोटो- सोशल मीडिया)
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मुख्य कारण यह रहा कि घटना के समय सटीक गवाह और ठोस सबूत सामने नहीं आए। ट्रेन के डिब्बे में उनकी आखिरी गतिविधियों पर स्पष्ट बयान नहीं मिले। जिन लोगों को आरोपी बनाया गया, उनके खिलाफ पर्याप्त प्रमाण नहीं थे। अदालत ने सबूतों के अभाव में उन्हें छोड़ दिया। राजनीतिक दबाव और उस समय की परिस्थितियों ने भी सच सामने लाने में बड़ी बाधा डाली। यही वजह है कि आज तक उनकी मौत आज भी एक रहस्य बनी हुई है।