CJI बीआर गवई, फोटो- सोशल मीडिया
Tamil Nadu Government vs Governor RN Ravi: सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई के दौरान एक दिलचस्प क्षण आया, जिसमें राज्यपाल द्वारा एक विधेयक राष्ट्रपति को भेजने को चुनौती दी गई थी। CJI बीआर गवई ने वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी से कहा कि वे केवल चार सप्ताह और इंतजार करें, क्योंकि राष्ट्रपति संदर्भ पर निर्णय 21 नवंबर से पहले ही ले लिया जाएगा। CJI 23 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं।
देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025 को तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में राज्यपाल आरएन रवि द्वारा तमिलनाडु शारीरिक शिक्षा एवं खेल विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2025 को मंजूरी देने के बजाय राष्ट्रपति के पास भेजने के फैसले को चुनौती दी गई थी।
दरअसल तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने तमिलनाडु शारीरिक शिक्षा एवं खेल विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2025 को मंजूरी नहीं दी। इसके बजाय, राज्यपाल ने उस बिल को सीधे राष्ट्रपति के पास भेज दिया। अब तमिलनाडु सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि राज्यपाल ऐसा नहीं कर सकते। अगर मुख्यमंत्री ने सलाह दी है कि बिल को मंजूरी दी जाए, तो राज्यपाल को ऐसा ही करना चाहिए। तमिलनाडु सरकार इस कार्रवाई को संविधान का “स्पष्ट रूप से असंवैधानिक” उल्लंघन मानती है।
तमिलनाडु की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सवाल उठाया कि राज्यपाल ऐसा नहीं कर सकते, वे विधेयक को मंजूरी देने के बजाय राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते हैं। सिंघवी के इन तर्कों पर, CJI गवई ने सिंघवी से कहा कि इस याचिका पर निर्णय के लिए राष्ट्रपति के संदर्भ (Presidential Reference) पर आने वाले फैसले तक इंतजार करना होगा।
CJI बी आर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने स्पष्ट किया कि इस मुद्दे पर संविधान पीठ के फैसले के बाद ही सुनवाई की जाएगी। CJI गवई ने सिंघवी से कहा, “आपको मुश्किल से चार सप्ताह और इंतजार करना होगा। संदर्भ पर 21 नवंबर से पहले निर्णय ले लिया जाएगा।”
दरअसल, 21 नवंबर 2025 को मौजूदा CJI बीआर गवई का अंतिम कार्यदिवस होगा, और वह 23 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। CJI ने इसी का हवाला देते हुए कहा कि वह रिटायर होने से पहले ही राष्ट्रपति के संदर्भ मामले पर फैसला सुनाकर विदा होंगे।
सुनवाई के दौरान, सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि 2015 से 2025 तक देश के सभी राज्यपालों द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए कुल संदर्भों की संख्या 381 है। मेहता ने तर्क दिया कि राज्यपाल आजादी के बाद से ही ऐसा करते आ रहे हैं, यह उनका काम है। इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी भी शामिल हो गए, जिन्होंने सवाल किया कि क्या राज्यपाल एक न्यायाधीश की तरह हर खंड की जाँच कर सकते हैं।
जब बहस और बढ़ने लगी, तो CJI बीच-बचाव में आए और फिर जोर देकर कहा, “बस 4 हफ्ते और। रुकिए।” इसके बाद पीठ ने फैसला आने के बाद इस मामले को सूचीबद्ध (लिस्ट) करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति संदर्भ पर 11 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। संदर्भ में यह पूछा गया था कि क्या एक संवैधानिक अदालत राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा निर्धारित कर सकती है।
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तमिलनाडु सरकार का कहना है कि विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजने का राज्यपाल का कृत्य “स्पष्ट रूप से असंवैधानिक” है और यह संविधान के अनुच्छेद 163(1) और 200 का उल्लंघन है। राज्यपाल ने यह विधेयक 14 जुलाई को राष्ट्रपति के पास भेजा था, जबकि मुख्यमंत्री की सलाह इसे मंजूरी देने की थी।