सर्वोच्च न्यायालय (फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध और अनाधिकृत निर्माण में नियमितीकरण की मांग करने वाले एक मामले को लेकर कड़ा फैसला देते हुए याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि इस तरह के उल्लंघन के प्रति कोई नरमी नहीं दिखाया जा सकती और निर्माण को ध्वस्त किया जाना चाहिए। कानून न मानने वालों और अनादर कर अवैध निर्माण करने वालों को नियमितीकरण की मांग को इजाजत नहीं दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि अवैध संरचनाओं को बिना किसी अपवाद के ध्वस्त किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा, कानून को उन लोगों को बचाने के लिए नहीं आना चाहिए, जो इसकी कठोरता का उल्लंघन करते हैं क्योंकि ऐसा करने से सजा से बचने की संस्कृति पनप सकती है। जबकि कानून एक न्यायपूर्ण और व्यवस्थित समाज की आधारशिला है।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ कोलकाता में एक अवैध इमारत के नियमितीकरण की मांग करने वाली याचिका की सुनवाई कर रहे थे। इस दौरान पीठ ने कलकत्ता हाई कोर्ट के उस फैसले को बहाल रखा, जिसने अनधिकृत निर्माण को नियमित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था और ढहाए जाने का आदेश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाते हुए कहा, दूसरे शब्दों में कहें तो अगर कानून उन लोगों की रक्षा करता है, जो इसका अपमान करने का प्रयास करते हैं तो ऐसे में कानूनों के निवारक प्रभाव को कमजोर करने का रास्ता बनेगा।
कोर्ट के फैसले के बाद याचिकाकर्ता कनीज अहमद के वकील ने कोर्ट से कहा कि उनके मुवक्किल को अनधिकृत निर्माण के नियमितीकरण की मांग करने का एक मौका दिया जाना चाहिए। पीठ ने इस पर कहा याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि आपकी दलील का कोई आधार नहीं है।
कोर्ट ने कहा, जिस व्यक्ति का कानून के प्रति कोई सम्मान नहीं है, उसे दो मंजिलों का अनधिकृत निर्माण करने के बाद उसे उसके नियमितीकरण की मांग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इसका कानून के शासन से कुछ लेना-देना है। अनाधिकृत निर्माण को ध्वस्त किया जाना चाहिए और कोई रास्ता नहीं है।
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पीठ ने कहा कि हमें यह देखकर दुख हो रहा है कि कई राज्य सरकारों ने प्रभाव शुल्क के भुगतान के आधार पर अनाधिकृत विकास के नियमितीकरण अधिनियम को लागू करते समय उपरोक्त पहलू को ध्यान में नहीं रखा है।