
राहुल गांधी, प्रियंका गांधी व सोनिया गांधी (डिजाइन फोटो)
Rahul Gandhi vs Priyanka Gandhi: शुक्रवार को खत्म हुए संसद के शीतकालीन सत्र ने भारतीय राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत दिया है। यह परिवर्तन देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस में साफ दिख रहा है। सत्र की शुरुआत से ही प्रियंका गांधी ने कांग्रेस और उसके सहयोगियों का नेतृत्व आगे बढ़कर किया है जबकि राहुल गांधी किनारे होते दिखे हैं।
2002 में नरेंद्र मोदी के सक्रिय राजनीति में आने के बाद से, कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने उनसे एक ऐसी राजनीतिक दूरी बनाए रखी है जो दुनिया के किसी भी लोकतंत्र में शायद ही देखने को मिलती है। हालांकि बीते कल यानी शुक्रवार को संसद के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन स्पीकर के बुलावे पर संसदीय औपचारिकताएं पूरी करने में प्रियंका ने जो उत्साह दिखाया वह ऐतिहासिक था।
प्रियंका गांधी ने पीएम मोदी और उनके मंत्रियों और विपक्षी पार्टियों के सांसदों के साथ एक बैठक में बहुत आसानी से हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने न सिर्फ अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड से जुड़े मामलों पर पीएम मोदी से बात की, बल्कि दोनों नेताओं को हंसते-मुस्कुराते भी देखा गया। यह राहुल गांधी के साथ कभी संभव नहीं होता।
इससे ठीक एक दिन पहले प्रियंका गांधी वाड्रा ने संसद भवन में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से उनके चैंबर में मुलाकात की। उन्होंने लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान ही उनसे मिलने की इच्छा जताई थी और गडकरी तुरंत मान गए। ऐसा व्यवहार उनके बड़े भाई और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से सोचना मुश्किल है या उन्हें इस तरह से काम करते नहीं देखा गया है।
जिस तरह से प्रियंका ने अपने भाई की गैरमौजूदगी में एक राजनेता और भारत में एक प्रमुख विपक्षी सांसद होने का मजबूत एहसास कराया है, वह राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस के लिए सामान्य नहीं है। इससे पता चलता है कि प्रियंका अब अपने फैसले खुद ले रही हैं या उन्हें ऐसा करने के लिए कहा गया है!
सच तो यह है कि जब मोदी सरकार संसद में कुछ बहुत महत्वपूर्ण बिल पास करने की तैयारी कर रही थी, तब लोकसभा में विपक्ष के नेता होने के बावजूद राहुल गांधी जर्मनी की यात्रा पर चले गए। इस बारे में केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता रवनीत सिंह बिट्टू ने एक रिपोर्टर से बातचीत में एक बड़ा दावा किया।
प्रियंका गांधी व राहुल गांधी (सोर्स- सोशल मीडिया)
डेढ़ साल पहले ही कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए बिट्टू ने कहा, “राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के बीच बड़ा टकराव चल रहा है। इसके साथ ही प्रियंका ने संसद में कुछ भाषण दिए जिससे उनकी तुलना राहुल से होने लगी। इससे गुस्सा होकर राहुल विदेश चले गए। इससे उनकी पार्टी और परिवार में दिक्कतें हो रही हैं।”
कुछ समय से राहुल गांधी “वोट चोरी” EVM में छेड़छाड़ की संभावना और SIR (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट) को बड़े मुद्दे बना रहे हैं। मॉनसून सत्र के दौरान विपक्षी INDIA गठबंधन ने भी इन मुद्दों पर उनका ज़ोरदार समर्थन किया। बिहार में राहुल ने इन मुद्दों पर हंगामा खड़ा करने की ज़बरदस्त कोशिश की।
राहुल ने INDIA गठबंधन के सभी नेताओं को बिहार की सड़कों पर लाकर आज़माया। हालांकि, बिहार चुनावों में न सिर्फ महागठबंधन का सफाया हो गया, बल्कि कांग्रेस भी मुट्ठी भर सीटें जीतने में नाकाम रही। नतीजतन INDIA गठबंधन के सभी सहयोगी उनसे दूरी बनाने लगे। उमर अब्दुल्ला ने वोट चोरी को कांग्रेस का एजेंडा बताया, जबकि सुप्रिया सुले ने EVM की तारीफ करनी शुरू कर दी।
लालू यादव के पास कोई जवाब नहीं बचा और ममता बनर्जी ने कांग्रेस से और भी ज्यादा दूरी दिखानी शुरू कर दी। DMK के पास तमिलनाडु में कांग्रेस का पिछलग्गू बनने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। पहले यह स्थिति कुछ छिपी हुई थी, लेकिन बिहार चुनावों ने INDIA गठबंधन की कमजोरी को उजागर कर दिया।
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान ही 8 दिसंबर को ओडिशा के कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक, मोहम्मद मोकिम ने सोनिया गांधी को पांच पन्नों का एक पत्र लिखकर पार्टी की कमान किसी युवा नेता को सौंपने की मांग की और उन्होंने इस भूमिका के लिए उनकी बेटी और पार्टी सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा का नाम सुझाया। उन्होंने राज्य और राष्ट्रीय चुनावों में कांग्रेस पार्टी की लगातार हार पर सवाल उठाया था और पार्टी के अंदर ओपन-हार्ट सर्जरी का सुझाव दिया था।
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अपने पत्र में उन्होंने बताया कि उनके जैसे नेताओं के लिए राहुल गांधी से मिलना भी कितना मुश्किल था। हालांकि पार्टी ने उन्हें निकाल दिया, लेकिन कांग्रेस पार्टी के रवैये में बाद में दिखे बदलाव के संकेत बताते हैं कि प्रियंका गांधी की बढ़ती सक्रियता बिना किसी वजह के नहीं है। ऐसा लगता है कि वह अपने भाई को किनारे करके खुद मुख्य भूमिका में आने की तैयारी कर रही हैं।






