AIMIM के नेता असदुद्दीन ओवैसी (फोटो- सोशल मीडिया)
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग के मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रस्ताव को लेकर देशभर में सियासी घमासान छिड़ गया है। आयोग द्वारा जारी शर्तों के तहत नए मतदाता बनने या दूसरे राज्य से आए नागरिकों को यह प्रमाणित करना होगा कि उनका जन्म 1 जुलाई 1987 से पहले भारत में हुआ था। इसके लिए उन्हें जन्म तिथि और स्थान का दस्तावेज़ देना अनिवार्य होगा। इस निर्णय को लेकर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी समेत विपक्षी नेताओं ने तीखी आपत्ति जताई है।
निर्वाचन आयोग की इस प्रक्रिया को बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने पहले ही ‘गुप्त एनआरसी’ करार दिया था। अब असदुद्दीन ओवैसी ने इसे बिहार के गरीबों, पिछड़ों और सीमावर्ती क्षेत्रों के लोगों के साथ एक क्रूर मजाक बताया है। उनका कहना है कि यह कदम वोटर लिस्ट से लाखों लोगों को बाहर करने की सोची-समझी रणनीति है।
गरीबों से उनके अधिकार छीने जा रहे हैं- ओवैसी
हैदराबाद से सांसद ओवैसी ने एक्स पर लिखा, “EC गुप्त रूप से NRC लागू कर रहा है। हर व्यक्ति से यह साबित करने के लिए कागजात मांगे जा रहे हैं कि वह और उसके माता-पिता कब और कहां पैदा हुए थे। सीमांचल जैसे क्षेत्रों में जहां लोग मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुटा पाते हैं, उनसे दस्तावेज़ों की उम्मीद करना अमानवीय है।” उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ तीन-चौथाई जन्म ही भारत में पंजीकृत होते हैं और सरकारी कागज़ों में अक्सर गड़बड़ियां होती हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश और संवैधानिक अधिकारों का हवाला
ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट के 1995 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इस प्रकार की मनमानी प्रक्रिया पर अदालत पहले ही सवाल उठा चुकी है। उनका कहना है कि यह कदम मतदाता सूची से गरीब, दलित, मुसलमान और आदिवासी वर्गों को बाहर करने की साजिश है। ओवैसी ने चेताया कि इससे जनता का निर्वाचन आयोग पर से भरोसा खत्म हो जाएगा।
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उधर, INDIA गठबंधन के अन्य नेता भी इस मुद्दे पर सक्रिय हो चुके हैं। पटना में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजद नेता तेजस्वी यादव, कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा और भाकपा (माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने भी इसे लोकतंत्र पर हमला बताया।