नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (सोर्स-सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: देश आज यानी 18 अगस्त 2024 को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 79वीं पुण्यतिथि मना रहा है। नेताजी के जीवन संघर्ष और लोहित इरादों से आप वाकिफ होंगे? उनके देशप्रेम के किस्से आपने सुने होंगे। लेकिन नेताजी के दिल में देश प्रेम के साथ-साथ प्रेम भी था। उन्हें अपनी टाइपिस्ट से मोहब्बत हो गई थी। जिसके बारे में शायद ही आप जानते हों। तो आज पुण्यतिथि के मौक पर हम आपको सुनाते हैं नेताजी की प्रेम कहानी।
साल था 1932, सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जेल में बंद सुभाष चंद्र बोस फरवरी 1932 में बीमार पड़ने लगे। इसके बाद ब्रिटिश सरकार उन्हें इलाज के लिए यूरोप भेजने को तैयार हो गई। इलाज के लिए वे ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना पहुंचे। लेकिन, उन्होंने तय किया कि वे यूरोप में रह रहे भारतीय छात्रों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए एकजुट करेंगे। इसी दौरान एक यूरोपीय प्रकाशक ने उन्हें ‘द इंडियन स्ट्रगल’ नामक पुस्तक लिखने का काम सौंपा। इसी पुस्तक के सिलसिले में जून 1934 में उनकी पहली मुलाकात एमिली शेंकेल से हुई।
एमिली एक खुले विचारों वाली, पढ़ी-लिखी जर्मन लड़की थी, जिसे उन्होंने अपनी पुस्तक को अंग्रेजी में टाइप करने के लिए रखा था। उसी साल नवंबर में नेताजी को अपने पिता की बीमारी की खबर मिली और वे भारत लौट आए। हालांकि, जब तक वे भारत पहुंचे, तब तक उनके पिता का निधन हो चुका था। लेकिन भारत आने के बाद ही उन्हें एमिली के प्रति अपने प्यार का एहसास हुआ। सुभाष भारत में नजरबंद थे और दार्जिलिंग में अपने भाई के घर पर रह रहे थे। यही वो दौर था जब सुभाष और एमिली पत्रों के ज़रिए एक दूसरे से जुड़ने लगे थे। और यहीं से नेताजी और एमिली की दास्तान-ए-इश्क का आग़ाज होता है..!
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हालाँकि, सुभाष और एमिली ने एक दूसरे के साथ बहुत कम समय बिताया। जून 1934 से लेकर 1945 में नेताजी की मौत की खबर तक, लगभग 11 सालों तक, देश को आज़ादी दिलाने के अलावा, सुभाष का दिल एमिली के लिए भी धड़कता रहा। दरअसल, ये 11 साल नेताजी की ज़िंदगी के सबसे ख़ास साल थे।
1936 में वे इलाज के लिए वापस जर्मनी गए और एमिली से एक बार फिर मिले। 1937-38 के दौरान दोनों जर्मनी में साथ रहे और कहा जाता है कि इसी दौरान उनकी शादी भी हुई। एमिली ने कभी भी सुभाष से साथ रहने या उनका साथ देने का कोई वादा नहीं माँगा। शादी के तुरंत बाद, वे जनवरी 1939 में भारत वापस आ गए। देश लौटकर वे आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े।
1941 से 43 के बीच, सुभाष और एमिली को इटली में कुछ समय बिताने का मौका मिला। ये वो दौर था जब सुभाष यूरोप में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों को देश की आज़ादी की लड़ाई से जोड़ने का काम कर रहे थे। इस दौरान 1942 में सुभाष और एमिली की बेटी अनीता का जन्म भी हुआ। लेकिन एक बार फिर देश की खातिर सुभाष 1943 में दक्षिण पूर्व एशिया के लिए निकल पड़े। लेकिन… इस बार वो ऐसे निकले कि कभी वापस नहीं लौटे। इसके बाद एमिली ने बहुत इंतज़ार किया, लेकिन इस बार सुभाष का एक भी पत्र नहीं आया, जो हर हफ़्ते उन्हें पत्र लिखते थे और फिर 18 अगस्त 1945 को एमिली को रेडियो के ज़रिए सुभाष की मौत की ख़बर मिली।
सुभाष बाबू ने कभी अपनी शादी के बारे में खुलकर बात नहीं की, लेकिन उनकी मौत के बाद उनके भतीजे की पत्नी कृष्णा बोस द्वारा लिखी गई किताब ‘एमिली और सुभाष’ में उनके प्रेम पत्रों की जानकारी मिलती है। 5 मार्च 1936 को नेताजी ने एक पत्र में लिखा था कि “मुझे नहीं पता कि भविष्य में क्या होगा। मुझे अपनी पूरी ज़िंदगी जेल में बितानी पड़ सकती है, मुझे गोली मार दी जा सकती है या फाँसी दे दी जा सकती है। हो सकता है कि मैं आपको कभी न देख पाऊँ, हो सकता है कि मैं आपको कभी पत्र न लिखूँ – लेकिन मेरा विश्वास करें, आप हमेशा मेरे दिल में, मेरे विचारों में और मेरे सपनों में रहेंगे।”
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नेताजी की मृत्यु के बाद एमिली ने अपनी बेटी अनीता को बड़ी हिम्मत से पाला, वो भी अकेले। अनीता हर रोज़ अपनी माँ को अपने पिता के साथ भारत के बारे में बात करते हुए सुनती थी। एमिली की मृत्यु 1996 में जर्मनी में हो गई। लेकिन जिस तरह नेताजी की वीरगाथा अमर है, उसी तरह उनकी और एमिली की प्रेम कहानी भी अमर है!