चारू मजूमदार (सोर्स-सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: एक दौर था कि पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में करीब करीब हर दीवार एक नारा लिखा होता था। ‘बोनदुकर नोल-ए, खोमोतर उत्सा’ जिसका मतलब है सत्ता बंदूक की नली से निकलती है। चाइनीज लीडर माओत्से तुंग ने 1920 में यह नारा दिया था लेकिन इसे बंगाल में मशहूर किया था चारू मजूमदार ने। चारू मजूमदार को भारत में माओवाद का जनका माना जाता है और आज 28 जुलाई को उनकी पुण्यतिथि है।
अबसे 52 साल पहले यानी 1972 में चारू पुलिस हिरासत चारू मजूमदार की मौत हो गई थी। इस मौत के 52 साल बाद भी उनकी विरासत विवादित है। क्योंकि वह विरासत खून से सनी हुई है। उस दौर की यादें आज भी उन पीढ़ियों को भयभीत करत देती हैं। जिन्होंने मजूमदार के नक्सलियों का तांडव देखा था।
चारु मजूमदार का जन्म बंगाल के एक धनी परिवार में हुआ था। उन्होंने आरामदायक जीवन छोड़कर कठिन क्रांतिकारी जीवन चुना। कहा जाता है कि वे देश में नक्सलवाद आंदोलन के असली जनक थे। आज भी नक्सली उनसे प्रेरणा लेते हैं। चारु की मौत आज ही के दिन 52 साल पहले जेल में हुई थी। चारु का घर पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में था। सिलीगुड़ी में हर कोई उनके घर का पता जानता है।
दरअसल, यह घर वहां एक आइकॉनिक बन गया है। इसके बारे में कई कहानियां बताई जाती हैं। कहा जाता है कि चारु मजूमदार सिलीगुड़ी के महानंदा रोड के मकान नंबर 25 में रहा करते थे। यहीं पर वे साथी दोस्तों के साथ बैठकर नक्सलबाड़ी गांव को जमींदारों के चंगुल से मुक्त कराने की बातें करते थे, योजनाएं बनाते थे।
इसी घर में चारु मजूमदार और कानू सान्याल ने ‘ऐतिहासिक 8 दस्तावेज’ तैयार किए थे, जिसने भारत में नक्सलवादी आंदोलन की नींव रखी। चारु मजूमदार का जन्म 1918 में एक जमींदार परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्हें जमींदार शब्द से चिढ़ थी। वे इस शब्द को बर्बरता का प्रतीक मानते थे। वे बंगाल के लगभग सभी महान विद्वानों, लेखकों और सामाजिक नेताओं को नकारते थे और उन्हें कुलीन व्यवस्था का हिस्सा कहते थे।
चारू मजूमदार को 16 जुलाई को गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद 28 जुलाई को पुलिस हिरासत में उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। चारू के बेटे अभिजीत मजूमदार और कई अन्य का मानना है कि चारू मजूमदार को हृदय की बीमारी से संबंधित दवाएं और ऑक्सीजन नहीं देकर पुलिस ने उनकी ‘हत्या’ की है।