भगदड़ का स्याह सच, हाथरस और महाकुंभ से लेकर बेंगलुरू तक (डिजाइन फोटो)
बेंगलुरु: एक तरफ था जश्न रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु की जीत का जश्न चल रहा था, स्टेडियम के अंदर सेलिब्रेशन था था तो दूसरी तरफ चीखें। रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु की जीत का जश्न मनाने के लिए बेंगलुरु के एम चिन्नास्वामी स्टेडियम में इकट्ठा हुए हजारों लोगों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि यह खुशी उनके जीवन के सबसे डरावने पल में बदल जाएगी।
4 जून को बेंगलुरु स्टेडियम और विधान सभा के बाहर मची भगदड़ में 11 लोगों की मौत हो गई और 33 से ज़्यादा लोग घायल हो गए। लेकिन ये कोई पहला मामला नहीं था। पिछले एक साल में देश में 6 ऐसी बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं, जहां भीड़ का उत्साह अचानक त्रासदी में बदल गया। आइए जानते हैं कि भारत में जश्न कैसे भगदड़ की वजह बन जाता है…
प्रयागराज महाकुंभ, जनवरी 2025 मौनी अमावस्या पर अमृत स्नान के लिए भारी भीड़ उमड़ी। भीड़ पर नियंत्रण न होने की वजह से भगदड़ मच गई, जिसमें 30 लोगों की मौत हो गई और 60 लोग घायल हो गए।
जनवरी 2025 में तिरुपति मंदिर में विशेष दर्शन टोकन के लिए उमड़ी भीड़ में अफरा-तफरी मच गई और 6 लोगों की मौत हो गई। श्रद्धालु एक रात पहले ही काउंटर पर जमा हो गए थे।
15 फरवरी को प्रयागराज जाने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ प्लेटफॉर्म पर बेकाबू हो गई। प्लेटफॉर्म 14 और 15 को जोड़ने वाले पुल पर मची भगदड़ में 18 लोगों की मौत हो गई, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। रात करीब 8 बजे प्लेटफॉर्म 14 और 15 को जोड़ने वाले फुटओवर ब्रिज पर यात्रियों की भारी भीड़ जमा हो गई थी। इस दौरान ‘प्रयागराज एक्सप्रेस’ और ‘प्रयागराज स्पेशल’ नाम की दो ट्रेनों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा हो गई, जिससे यात्रियों में अफरा-तफरी मच गई। भगदड़ की शुरुआत कुछ यात्रियों के फिसलकर गिरने से हुई, जिसमें कई लोग कुचले गए।
2 मई 2025 को गोवा के श्री लैराई देवी मंदिर की वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान 7 लोगों की मौत हो गई और 50 से अधिक घायल हो गए। भगदड़ के पीछे भीड़ को कारण बताया गया और कहा गया कि श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए यहां सुरक्षा व्यवस्था अपर्याप्त थी।
फिल्म ‘पुष्पा 2’ के प्रीमियर के दौरान अभिनेता अल्लू अर्जुन को देखने के लिए उमड़ी भीड़ ने थिएटर का गेट तोड़ दिया। इसमें एक महिला और उसके बेटे की जान चली गई। इस घटना को लेकर फिल्मी दुनिया से लेकर सियासी गलियारों तक जमकर बवाल कटा था।
भोले बाबा के सत्संग में 80,000 लोगों को आने की अनुमति थी, लेकिन 2.5 लाख लोग आए। इस भयावह भगदड़ में 130 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना को आजादी के बाद की सबसे बड़ी भगदड़ माना जा रहा है।
हर दुर्घटना के बाद जांच होती है, मुआवजा बांटा जाता है और कुछ दिनों तक चर्चा भी होती है। लेकिन असली समस्या – भीड़ प्रबंधन और जिम्मेदारी तय न होना – अभी भी जस की तस बनी हुई है। कोई त्योहार हो, धार्मिक आयोजन हो या क्रिकेट मैच, भारत में भीड़ की ताकत हमेशा अनुमान से ज्यादा होती है।
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अनुमान की यह गलती हर बार कीमत के तौर पर जान मांगती है। कभी किसी मासूम की जान चली जाती है तो कभी किसी बुजुर्ग की दम घुटने से मौत हो जाती है। अब समय आ गया है कि हर घटना से पहले ‘सुरक्षा पहले’ के सिद्धांत को अपनाया जाए।