
सुप्रीम कोर्ट से क्यों नाराज हुआ इलाहाबाद हाईकोर्ट?
Allahabad High Court Dispute With Supreme Court: न्यायपालिका के इतिहास में यह एक बड़ा टकराव माना जा रहा है। दो दशकों से सुलग रहा एक विवाद बुधवार को एक बार फिर से खुलकर सामने आ गया, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को कड़े शब्दों में नसीहत दे डाली। हाईकोर्ट ने साफ कहा कि सुप्रीम कोर्ट को जिला अदालतों के मामलों से “दूर रहना चाहिए” (हैंड्स-ऑफ अप्रोच)। यह पूरा घमासान राज्य के न्यायिक अधिकारियों के सेवा नियमों को लेकर छिड़ा है, जिस पर हाईकोर्ट अपना अधिकार कम होते नहीं देखना चाहता।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सामने तीखी दलीलें दीं। उन्होंने सवाल किया, “हाईकोर्ट को उसके संवैधानिक अधिकारों और कर्तव्यों से वंचित क्यों किया जा रहा है? अब बात बहुत आगे बढ़ चुकी है।” द्विवेदी ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 227(1) के तहत जिला न्यायपालिका पर निगरानी का अधिकार हाईकोर्ट का है, इसलिए भर्ती, प्रमोशन या सेवानिवृत्ति आयु जैसे सेवा नियम बनाने का हक भी हाईकोर्ट का ही होना चाहिए।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि जिला न्यायाधीशों की भर्ती, उनकी सेवानिवृत्ति की आयु या प्रमोशन कोटा जैसे मामलों में शीर्ष अदालत को दखल नहीं देना चाहिए। इस पर, सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपना रुख स्पष्ट किया। बेंच ने कहा कि “ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सर्विस” (अखिल भारतीय न्यायिक सेवा) की अवधारणा अभी भी विचाराधीन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनका मकसद हाईकोर्ट की शक्तियों को कम करना कतई नहीं है, बल्कि वे सिर्फ यह देखना चाहते हैं कि जिला जजों की पदोन्नति के लिए क्या कुछ सामान्य दिशा-निर्देश बनाए जा सकते हैं।
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यह पूरा विवाद जिला न्यायाधीश के पद पर होने वाली पदोन्नति को लेकर है, जो तीन तरीकों से होती है: वरिष्ठता-आधारित, सीधी भर्ती और सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा। 2002 में इनका अनुपात 50:25:25 था, जिसे 2010 में बदला गया और फिर सुप्रीम कोर्ट ने इसे दोबारा 50:25:25 कर दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट इस लड़ाई में अकेला नहीं है। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनींदर आचार्य ने भी कहा कि मौजूदा प्रणाली ठीक काम कर रही है और नए कोटे की जरूरत नहीं है। केरल, बिहार और दिल्ली के प्रतिनिधियों ने भी बदलाव का विरोध किया। द्विवेदी ने अंत में कहा कि सुप्रीम कोर्ट को दखल तभी देना चाहिए जब कहीं न्यायिक व्यवस्था चरमरा जाए, क्योंकि हर राज्य के नियम अलग होते हैं।






