सुप्रीम कोर्ट, फोटो- सोशल मीडिया
Comprehensive Sexuality Education: यह नोटिस सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जारी किया। समावेशी यौन शिक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, एनसीईआरटी (NCERT), और छह राज्यों महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, तमिलनाडु और कर्नाटक को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व में दिए गए ऐतिहासिक फैसलों- नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी बनाम भारत संघ और सोसाइटी फॉर एन्लाइटनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन बनाम भारत संघ का हवाला देते हुए कहा है कि कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का अब तक अनुपालन नहीं किया गया है।
यह याचिका एक 12वीं कक्षा के छात्रा ने दायर की है, जिसमें स्कूल पाठ्यक्रम में CSE को ट्रांसजेंडर-समावेशी बनाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि NCERT और राज्य स्तरीय SCERTs (State Councils of Educational Research and Training) द्वारा तैयार की जा रही पाठ्यपुस्तकों में जेंडर पहचान, लिंग विविधता और सेक्स-जेंडर के बीच अंतर जैसी जानकारी शामिल नहीं की गई है, जबकि कानूनी और संवैधानिक रूप से यह आवश्यक है।
इसके अलावा ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 2(ड) और 13 के तहत भी यौन शिक्षा में ट्रांसजेंडर पहचान और अधिकारों को स्पष्ट रूप से शामिल किया जाना अनिवार्य है। लेकिन एनसीईआरटी और अधिकांश राज्यों के शिक्षा बोर्डों की किताबों में इसकी झलक तक नहीं है।
याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि यह स्थिति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (भेदभाव का निषेध), 19(1)(a) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) और 21A (शिक्षा का अधिकार) का उल्लंघन है। साथ ही यह नीति निदेशक तत्वों- अनुच्छेद 39(e)-(f), 46 और 51(c) की भी अनदेखी है जो बच्चों और कमजोर वर्गों के संरक्षण की बात करते हैं।
याचिका में अंतरराष्ट्रीय मानकों का भी उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि यूनेस्को और डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रकाशित International Technical Guidance on Sexuality Education (ITGSE) को सुप्रीम कोर्ट ने 2024 के एक फैसले में समर्थन दिया था। यह दस्तावेज CSE का एक अंतरराष्ट्रीय ढांचा प्रदान करता है, जिसमें यौन स्वास्थ्य, जेंडर समानता, सहमति और समावेशिता जैसे विषयों को शामिल किया गया है।
याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि 2019 के बाद एनसीईआरटी ने कुछ नीतिगत दस्तावेज, शिक्षकों के लिए दिशानिर्देश और सामग्री विकसित तो की है, लेकिन इन्हें मुख्यधारा की किताबों में अब तक शामिल नहीं किया गया है। यहां तक कि 7 मई 2025 को आरटीआई के तहत एनसीईआरटी ने स्वीकार किया कि उसने अब तक ट्रांसजेंडर-समावेशी यौन शिक्षा पर कोई शिक्षक प्रशिक्षण सत्र आयोजित नहीं किया है।
यह भी पढ़ें: SCO के मंच से दहाड़े PM मोदी, पहलगाम पर पाक को दिया बड़ा झटका; आतंकवाद पर सदस्य देशों का साथ
सुप्रीम कोर्ट का यह नोटिस यौन शिक्षा को अधिक समावेशी और वैज्ञानिक बनाने की दिशा में एक अहम पहल माना जा रहा है। इससे यह उम्मीद जगी है कि स्कूलों में विद्यार्थियों को ट्रांसजेंडर समुदाय और यौन विविधता के बारे में संवेदनशील और सही जानकारी मिल सकेगी। यह कदम भारत में लिंग समावेशी शिक्षा को एक मजबूत वैधानिक आधार देने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
अब केंद्र, एनसीईआरटी और संबंधित राज्यों को तय समय सीमा में कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखना होगा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई में इस विषय पर विस्तृत बहस कर सकता है।