हरिश साल्वे महाराष्ट्र वकील, सुप्रीम कोर्ट (pic credit; social media)
Maharashtra News: महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक अहम दलील पेश की। सरकार ने कहा कि राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने का अधिकार न्यायालय के पास नहीं है। यह अधिकार केवल राज्यपालों और राष्ट्रपति के पास निहित है।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष महाराष्ट्र की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे पेश हुए। उन्होंने स्पष्ट कहा कि न्यायालय किसी भी विधेयक को पारित करने या मंजूरी देने का आदेश नहीं दे सकता। संविधान के अनुसार यह शक्ति सिर्फ राज्यपालों और राष्ट्रपति के पास है।
यह बहस राष्ट्रपति द्वारा मांगे गए परामर्श के तहत हुई। राष्ट्रपति ने पूछा है कि क्या अदालत राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए किसी विधेयक पर विचार करने की समय-सीमा तय कर सकती है। इस पर साल्वे ने दलील दी कि न्यायालय केवल राज्यपाल या राष्ट्रपति द्वारा लिए गए निर्णय की जांच कर सकता है, लेकिन यह नहीं पूछ सकता कि उन्होंने वह निर्णय क्यों लिया।
साल्वे ने कहा कि भारतीय संघवाद की यह विशेषता नहीं है कि किसी प्रस्ताव पर फैसला लेने से पहले कई दौर की चर्चा जरूरी हो। हमारा संघवाद सीमित स्वरूप का है, जिसमें यह अपेक्षा की जाती है कि संवैधानिक पदाधिकारी विवेक और संवैधानिक दायित्वों के तहत काम करेंगे।
उन्होंने अनुच्छेद 200 का हवाला देते हुए कहा कि इसमें राज्यपाल के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। राज्यपाल चाहें तो मंजूरी रोक सकते हैं और यह शक्ति न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं आती। साल्वे ने यह भी कहा कि विधेयक पारित होना कई बार राजनीतिक विचार-विमर्श पर आधारित होता है। इस प्रक्रिया में कभी 15 दिन तो कभी 6 महीने भी लग सकते हैं।
संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर शामिल रहे। अदालत अब इस पर विस्तृत सुनवाई करेगी कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति के निर्णयों को समयबद्ध करने की व्यवस्था की जा सकती है या नहीं।