
बिहार चुनाव में मैथिलि ठाकुर का जलवा, खेसारी लाल यादव का हुआ बंटाधार
Bihar Election 2025: साल 2025 भारतीय राजनीति के लिए, खासकर बिहार चुनाव के संदर्भ में, काफी दिलचस्प रहा। इस साल भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री और लोककला जगत के कई बड़े चेहरों ने राजनीति में कदम रखा। कुछ कलाकारों ने सफलता का स्वाद चखा, तो कुछ को मतदाताओं के सामने निराशा हाथ लगी।
भोजपुरी के पावर स्टार पवन सिंह और उनकी पूर्व पत्नी ज्योति सिंह के राजनीतिक दांव ने सबसे ज्यादा सुर्खियाँ बटोरीं। वहीं, जुझारू अभिनेता और गायक खेसारी लाल यादव ने भी अपनी किस्मत आजमाई। इसके अलावा, बिहार की लोकगायिका मैथिलि ठाकुर का राजनीति में प्रवेश करना भी इस साल का एक बड़ा घटनाक्रम रहा। इन कलाकारों ने अपनी लोकप्रियता को वोट में बदलने की पूरी कोशिश की, लेकिन परिणाम सबके लिए एक जैसे नहीं रहे।
बिहार की लोकप्रिय लोकगायिका मैथिलि ठाकुर का राजनीति में आना 2025 के सबसे सकारात्मक घटनाक्रमों में से एक रहा।
राजनीतिक परिणाम: उनकी साफ़-सुथरी छवि और सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव ने उन्हें जनता के बीच मजबूती दी। मैथिलि ठाकुर को सफलता मिली और उन्होंने राजनीति में अपनी जगह बनाई। उनकी जीत को कला और संस्कृति के सम्मान के रूप में देखा गया।
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भोजपुरी पावर स्टार पवन सिंह और उनकी पूर्व पत्नी ज्योति सिंह का चुनावी मुकाबला साल का सबसे हाई-वोल्टेज ड्रामा था।
पवन सिंह: अपनी ज़बरदस्त फैन फॉलोइंग के बावजूद, पवन सिंह के लिए चुनाव का सफर मुश्किलों से भरा रहा। उनकी विवादित निजी जिंदगी का असर उनके राजनीतिक प्रदर्शन पर पड़ा और उनका प्रदर्शन उम्मीद से कम रहा।
ज्योति सिंह: ज्योति सिंह ने पहली बार राजनीति में कदम रखा और एक मजबूत महिला उम्मीदवार के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनकी सहानुभूति और महिला मतदाताओं के बीच बढ़ती लोकप्रियता के कारण उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया, जिससे यह चुनावी लड़ाई काफी दिलचस्प बन गई।
भोजपुरी फिल्मों और गानों के माध्यम से घर-घर में पहचान बनाने वाले खेसारी लाल यादव ने भी इस चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई।
राजनीतिक परिणाम: उनकी ज़बरदस्त जमीनी पकड़ और जनता के बीच ‘जनता का हीरो’ वाली छवि होने के बावजूद, खेसारी लाल यादव को इस चुनावी सफर में बड़ी सफलता नहीं मिली। उनका प्रदर्शन उनके राजनीतिक करियर के लिए एक बड़ा सबक साबित हुआ।
कुल मिलाकर, 2025 के बिहार चुनाव ने यह साबित कर दिया कि केवल फिल्मी लोकप्रियता ही चुनावी जीत की गारंटी नहीं होती। मैथिलि ठाकुर की तरह साफ छवि और जनता के मुद्दों से जुड़ाव रखने वालों को जहां सफलता मिली, वहीं विवादास्पद निजी जीवन वाले कलाकारों का राजनीतिक बंटाधार हो गया।






