फिल्मफेयर अवॉर्ड्स का विवादों से भरा इतिहास
70th Filmfare Awards: फिल्मफेयर अवॉर्ड्स, बॉलीवुड की सबसे प्रेस्टीजियस अवॉर्ड श्रृंखला, हमेशा ही अपनी ग्लैमर और भव्य आयोजन के लिए सुर्खियों में रहे हैं, लेकिन इनके इतिहास में विवादों की लंबी कतार भी रही है। 1954 में शुरू हुए इस इवेंट ने हिंदी सिनेमा की एक्सीलेंट फिल्मों और कलाकारों को सम्मानित करने का कार्य किया, लेकिन समय-समय पर इसके फैसलों और प्रक्रियाओं को लेकर कई मशहूर सितारों ने सवाल उठाए।
1973 में ऋषि कपूर ने अपनी बायोग्राफी खुल्लम-खुल्ला में खुलासा किया कि उन्होंने अपनी पहली फिल्म बॉबी के लिए 30,000 रुपये देकर बेस्ट एक्टर अवॉर्ड खरीदा था। उस साल जंजीर भी रिलीज हुई थी और अमिताभ बच्चन को अवॉर्ड मिलने की उम्मीद थी, लेकिन ऋषि ने खुद इसे खरीद लिया। इस खुलासे के बाद फिल्मफेयर अवॉर्ड्स की निष्पक्षता पर कई सवाल उठे।
वहीं, 1972 में एक्टर प्राण ने भी फिल्मफेयर अवॉर्ड्स को लेकर विवाद खड़ा किया। उन्हें बेईमान फिल्म के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवॉर्ड दिया गया था, लेकिन उन्होंने देखा कि कमाल अमरोही की ब्लॉकबस्टर फिल्म पाकीजा को एक भी अवॉर्ड नहीं मिला। नाराज होकर प्राण ने अपना अवॉर्ड लेने से इंकार कर दिया, जिससे यह घटना लंबे समय तक चर्चा में रही।
1995 में एक्टर आमिर खान ने अपने बहुप्रतिक्षित फिल्म रंगीला को अवॉर्ड न मिलने के बाद फिल्मफेयर अवॉर्ड्स का बहिष्कार कर दिया। उनके अनुसार यह फैसला फिल्म की गुणवत्ता और मेहनत का सम्मान नहीं करता था। इसके अलावा, एक्ट्रेस मौसमी चटर्जी ने बताया कि उन्हें पैसे के बदले अवॉर्ड ऑफर किया गया था, जिसमें उन्हें फिल्म, कपड़ा और मकान के बदले अवॉर्ड लेने की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया।
ये भी पढ़ें- बॉलीवुड से टीवी तक, प्रियंका चोपड़ा, हिना खान समते कई सेलेब्स ने मनाया त्योहार
वर्ष 2009 में आयोजित अवॉर्ड सेरेमनी में नील नितिन मुकेश ने होस्ट शाहरुख खान को स्टेज पर ही फटकार लगाई। शाहरुख ने उनसे सवाल पूछा कि उनका सरनेम क्या है, जो नील को अपमानजनक लगा और उन्होंने इसका विरोध किया। इसके अलावा, एक्टर नसीरुद्दीन शाह ने एक बार कहा था कि उन्होंने फिल्मफेयर ट्रॉफियों को बाथरूम डोर हैंडल के रूप में उपयोग किया। उनके अनुसार अवॉर्ड्स का अब उनके लिए कोई महत्व नहीं रह गया। ये घटनाएं दर्शाती हैं कि फिल्मफेयर अवॉर्ड्स का ग्लैमर और प्रतिष्ठा जितना बड़ा है, विवाद और आलोचना का इतिहास भी उतना ही लंबा रहा है।