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Asthawan Assembly Constituency: बिहार के नालंदा जिले की अस्थावां विधानसभा सीट 2025 के चुनावी समर में एक बार फिर से राजनीतिक चर्चा का केंद्र बन गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले की यह सीट जदयू के लिए लंबे समय से सुरक्षित मानी जाती रही है, लेकिन इस बार राजद और जन स्वराज पार्टी ने मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।
अस्थावां प्रखंड बिहारशरीफ से लगभग 11 किलोमीटर पूर्व स्थित है। यह क्षेत्र ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। पास ही स्थित नालंदा महाविहार और पावापुरी जैसे धार्मिक स्थल इसकी पहचान को और गहरा करते हैं। फल्गु नदी इस इलाके की जीवनरेखा है, जो कृषि को मुख्य आजीविका बनाए रखती है।
अस्थावां का इतिहास मगध साम्राज्य से जुड़ा रहा है। यह क्षेत्र कभी स्थानीय व्यापार केंद्र के रूप में प्रसिद्ध था। नालंदा विश्वविद्यालय की निकटता ने यहां की शिक्षा और संस्कृति को प्रभावित किया है। गिलानी गांव के आम देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं और यहां के लोग ‘गिलानी’ सरनेम का प्रयोग करते हैं, चाहे वे हिंदू हों या मुस्लिम। वहीं, जियर गांव सूर्य नारायण की पूजा और वैष्णव परंपरा के लिए जाना जाता है।
अस्थावां विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी और अब तक यहां 18 चुनाव हो चुके हैं। 2001 के उपचुनाव के बाद से जदयू या उसकी पूर्ववर्ती समता पार्टी ने लगातार छह बार जीत दर्ज की है। इससे पहले 1985 से 2000 तक निर्दलीय उम्मीदवारों का दबदबा रहा, जिन्होंने चार बार लगातार और कुल पांच बार जीत हासिल की।
अब तक कांग्रेस ने इस सीट पर चार बार, जनता पार्टी ने दो बार और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने एक बार जीत दर्ज की है। भाजपा और राजद जैसी बड़ी पार्टियां यहां अब तक कोई खास प्रभाव नहीं बना सकी हैं। राजद को इस सीट पर पहली जीत का इंतजार है, और इस बार रवि रंजन कुमार को उम्मीदवार बनाकर पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी है।
इस बार जदयू ने जितेंद्र कुमार को मैदान में उतारा है, जबकि राजद से रवि रंजन कुमार और जन स्वराज पार्टी से लता सिंह चुनावी अखाड़े में हैं। यह त्रिकोणीय मुकाबला जातीय समीकरणों, स्थानीय मुद्दों और जनाधार पर आधारित होगा। नीतीश कुमार का प्रभाव इस सीट पर अब भी कायम है, लेकिन विपक्ष इसे चुनौती देने की रणनीति बना रहा है।
अस्थावां की जनता अब विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रही है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को समर्थन देने वाली योजनाओं की मांग बढ़ रही है। धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों की उपेक्षा भी चुनावी विमर्श का हिस्सा बन सकती है।
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अस्थावां विधानसभा सीट पर 2025 का चुनाव केवल दलों की ताकत की परीक्षा नहीं, बल्कि जनता की सोच और अपेक्षाओं का भी प्रतिबिंब होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या जदयू अपनी जीत की परंपरा को कायम रखती है या राजद इस बार नीतीश के गढ़ में सेंध लगाने में सफल होती है।