प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद बीजेपी उम्मीदवार कुमार आयलानी व सेकुलर एलायंस ऑफ इंडिया के नेता
ठाणे: ठाणे जिले के उल्हासनगर शहर की राजनीति में विगत 14 वर्षों से सक्रिय व कई मौकों पर राजनीतिक उलटफेर करने की ताकत रखने वाली पार्टी यानि सेकुलर एलायंस ऑफ इंडिया अर्थात साईं पार्टी की अध्यक्ष आशा जीवन इदनानी ने उल्हासनगर विधानसभा के चुनाव में महायुति के उम्मीदवार कुमार आयलानी को समर्थन देने की घोषणा की है। साईं पार्टी का कहना है कि शहर हित में यह फैसला लिया गया है।
उल्हासनगर के एक होटल में साईं पार्टी द्वारा कार्यकर्ता सम्मेलन व प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया था, इस मौके पर साईं पार्टी ने महायुति को समर्थन देकर आगामी विधानसभा चुनावों में अपनी भूमिका स्पष्ट कर दी।
इस दौरान साईं पार्टी के संस्थापक पूर्व उप महापौर जीवन इदनानी, हरेश इदनानी, सुनिल गंगवानी, इंदिरा उदासी, भाजपा उम्मीदवार कुमार आयलानी, जिलाध्यक्ष प्रदीप रामचंदानी, प्रकाश माखीजा, राजेश वधारिया, जमनु पुरसवानी, महेश सुखरमानी, मनोहर खेमचंदानी आदि पदाधिकारी भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
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साईं पार्टी अध्यक्ष आशा जीवन इदनानी ने महायुति को समर्थन देने की घोषणा के साथ यह भी कहा कि उल्हासनगर मनपा क्षेत्र का अन्य शहरों की तर्ज पर विकास हो इसलिए साईं पार्टी ने सभी पदाधिकारियों की सहमति से यह निर्णय लिया गया है।
वहीं समर्थन देने के लिए साईं पार्टी आयोजित कार्यक्रम में बीजेपी के जिलाध्यक्ष प्रदीप रामचंदानी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि समय के अनुसार हर क्षेत्र में बदलाव आया है इससे राजनीति भी अछूती नहीं रही है। बीजेपी जिलाध्यक्ष रामचंदानी ने मंच से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का नाम लिए बिना एक उदाहरण देते हुए कहा कि जिन्हें गद्दार कहा जाता है वे मुख्यमंत्री बन जाते हैं। उनके इस बयान से काफी हंगामा मच गया है।
अपने भाषण में उन्होंने उल्हासनगर मनपा में महापौर चुनाव का हवाला देते हुए अचानक कहा कि अब कोई गद्दार नहीं है, जिन्हें गद्दार कहा जाता है, वे मुख्यमंत्री बन जाते हैं। राजनीति की परिभाषा बदल गई है। कल जिन्हें हम गद्दार कहते थे, वे आज गद्दार नहीं रहे हैं। हमारी पार्टी में शामिल हुए। आज हम उन्हें खुद्दार कहते हैं। समय ने यह बदलाव किया है।
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बीजेपी नेता प्रदीप रामचंदानी के बयान पर शिवसेना ने नाराजगी जताई। इसके बाद उन्होंने अपने बयान के लिए मांफी भी मांगी। बता दें कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे हिंदुत्व के मुद्दे पर उद्धव ठाकरे से अलग हुए थे। एकनाथ शिंदे के अलग होने के बाद शिवसेना में विभाजन हुआ।