नायब सिंह सैनी व भूपेन्द्र हुड्डा (डिजाइन फोटो)
Haryana Assembly Election Results: हरियाणा चुनाव के लिए वोटों की गिनती जारी है। एग्जिट पोल में कांग्रेस भारी जीत की ओर बढ़ रही थी, लेकिन मंगलवार को गिनती में बाजी पलटती नजर आ रही है। दोपहर 1.00 बजे तक बीजेपी 49 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। वहीं, कांग्रेस को 34 सीटों पर लीड हासिल है। अगर भारतीय जनता पार्टी जाट लैंड में भी अच्छा प्रदर्शन करती दिख रही है, तो इसका मतलब है कि कांग्रेस की जवान और किसान को खुश करने रणनीति विफल हो गई है, वहीं बीजेपी का ‘पंच’ कामयाब हो गया है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कई ऐसे दांव चले जिससे विजयश्री हासिल हो सके, लेकिन उनमें से पांच ऐसे है जो पूरी तरह कामयाब रहे। यही वजह है कि चुनावी नतीजों में भाजपा हरियाणा में हैट्रिक जमाती हुई दिखाई दे रही है। जबकि, कांग्रेस का सत्ता में वापसी का स्वप्न धुंधला होता जा रहा है। बीजेपी की कामयाबी की पांच बड़ी वजहें क्या रहीं वह आप यहां देख सकते हैं।
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हरियाणा में जाट वोट ज्यादातर कांग्रेस और इनेलो को ही मिले हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को भी कुछ प्रतिशत जाट वोट मिले थे, लेकिन ज्यादातर वोट कांग्रेस और इनेलो को ही मिले थे। 2019 में भाजपा का जाट वोट शेयर और भी कम हो गया। जाट वोट कांग्रेस और जेजेपी के बीच बंट गए। यहीं से भाजपा ने इस रणनीति पर काम करना शुरू किया कि उसे हरियाणा में जाट वोट नहीं चाहिए। जाट विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए भाजपा ने पंजाबी हिंदुओं, ओबीसी, ब्राह्मणों पर दांव लगाया। आखिरकार यह दांव भाजपा के काम आया।
चुनाव के आखिरी वक्त में नायब सैनी को सीएम बनाना भी काम आया। एंटी इनकंबेंसी के चलते जब कोई भाजपा नेताओं से सवाल पूछता तो स्थानीय नेता कहते कि अब सरकार बदल गई है। अब सब ठीक हो जाएगा। दूसरी बात सैनी का सौम्य व्यक्तित्व भी काम आया। सैनी शेखी बघारने वाले नहीं हैं। जो आमतौर पर भाजपा और कांग्रेस नेताओं का मुख्य गुण होता है। सैनी को समय बहुत कम मिला, लेकिन उन्होंने ओबीसी अधिकारों के लिए कई कानून बनाए। कई ऐसी योजनाएं बनाईं, जिनका सीधा फायदा आम लोगों को मिला। सैनी ओबीसी वोटों का ध्रुवीकरण करने में भी सफल रहे।
किसानों और महिला पहलवानों के आंदोलन से भाजपा काफी परेशान थी। लेकिन इस आंदोलन के खिलाफ कोई कार्रवाई न करके भाजपा ने इसे बढ़ने दिया। पहलवानों-किसानों और जवानों का आंदोलन इतना बढ़ गया कि अन्य वर्ग चिढ़ गए। भाजपा चुपचाप अपने नेताओं को किसानों के हाथों पिटते देखती रही। किसानों का अहंकार इतना बढ़ गया कि उन्होंने पूर्व सीएम खट्टर और कई मंत्रियों को गांवों में घुसने से भी रोक दिया। हरियाणा में किसान आंदोलन में सबसे ज्यादा जाट और जट शामिल थे। अन्य जातियों, किसानों, व्यापारियों और अन्य वर्गों को लगा कि अगर ये लोग सत्ता में आ गए तो हंगामा और भी बढ़ जाएगा। यह बात भाजपा के लिए कारगर रही।
इन चुनावों में दलित वोटों की सबसे अहम भूमिका रही। पूरे प्रदेश में करीब 20 फीसदी दलित वोट हैं। जैसे कांग्रेस ने यूपी में संविधान बचाओ-आरक्षण बचाओ का नारा देकर खेल खेला था, वैसा ही हरियाणा में करने की तैयारी थी। लेकिन इस बार भाजपा दलित वोट पाने के लिए तैयार थी। लेकिन इसका मुकाबला करने के लिए भाजपा मिर्चपुर और गोहाना कांड लेकर आई। भाजपा ने दलितों को यह समझाया कि मिर्चपुर और गोहाना जैसी घटनाएं भाजपा राज में उनके साथ नहीं हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और पूर्व मुख्यमंत्री खट्टर ने अपनी सभाओं में मिर्चपुर और गोहाना की घटनाओं पर बार-बार चर्चा की।
कांग्रेस से मुकाबले के लिए भाजपा ने हरियाणा में हर कदम सावधानी से उठाया। मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ जनता में नाराजगी थी, इसलिए उन्हें कुछ दिनों के लिए दरकिनार कर दिया गया। यहां तक कि पीएम की सभा में भी उन्हें मंच पर आने नहीं दिया गया, सभा में पहुंचना तो दूर की बात थी। विनेश फोगाट ने बार-बार पीएम मोदी पर निशाना साधा, लेकिन किसी भाजपा नेता ने उनका जवाब नहीं दिया। ऐसा लग रहा था कि सभी नेताओं को ऊपर से निर्देश था कि उन्हें विनेश के खिलाफ बोलने की इजाजत नहीं है। टिकट वितरण के बाद असंतोष जताने वालों और पार्टी के खिलाफ जाने की बात करने वालों को मनाने के लिए खुद सीएम सैनी गए।
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