तेघरा विधानसभा सीट (सोर्स- डिजाइन)
Teghra Assembly Constituency: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी के बीच बेगूसराय जिले की तेघरा विधानसभा सीट एक बार फिर राजनीतिक विश्लेषण का केंद्र बन गई है। यह सीट भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) का ऐतिहासिक गढ़ रही है, लेकिन बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प होने की संभावना है।
तेघरा विधानसभा क्षेत्र का गठन 1951 में हुआ था और 1967 तक यह इसी नाम से जाना जाता रहा। इसके बाद इसका नाम ‘बरौनी’ कर दिया गया, जो 2008 के परिसीमन तक बना रहा। परिसीमन के बाद फिर से ‘तेघरा’ नाम लौटा। कुल 15 चुनावों में छह बार ‘तेघरा’ और नौ बार ‘बरौनी’ के नाम से मतदान हुआ, लेकिन विचारधारा का झंडा सीपीआई ने लगातार बुलंद रखा।
बरौनी नाम के तहत हुए सभी नौ चुनावों में सीपीआई ने जीत दर्ज की। 1962 से शुरू हुआ यह सिलसिला 2005 तक चला, जब पार्टी ने लगातार 10वीं बार जीत हासिल की। इससे पहले 1952 और 1957 में कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा किया था। 2010 में भाजपा ने सीपीआई की पकड़ को चुनौती दी और सीट जीत ली, जबकि 2015 में राजद ने बाजी मारी। 2020 में महागठबंधन के तहत सीपीआई को यह सीट मिली और पार्टी ने जेडीयू को भारी अंतर से हराकर 11वीं बार जीत दर्ज की।
तेघरा में सीपीआई का जनाधार भले ही मजबूत रहा हो, लेकिन 2008 के परिसीमन के बाद क्षेत्रीय बदलावों ने पार्टी की पकड़ को चुनौती दी है। 2015 में तीसरे स्थान पर रहने वाली सीपीआई ने 2020 में वापसी की, लेकिन 2025 में उसे एनडीए और इंडिया ब्लॉक के बीच की खींचतान में फिर से अपनी साख साबित करनी होगी।
तेघरा विधानसभा क्षेत्र में बाढ़ नियंत्रण, कृषि संकट और प्रवासन जैसे मुद्दे लंबे समय से चर्चा में हैं। बूढ़ी गंडक के किनारे बसे इस क्षेत्र की 80 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है, जबकि बरौनी औद्योगिक नगर की नजदीकी के बावजूद औद्योगिक विकास की गति धीमी रही है। इन मुद्दों पर जनता का रुख इस बार चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकता है।
तेघरा की कुल जनसंख्या लगभग पांच लाख है, जिसमें पुरुषों की संख्या अधिक है। मतदाता सूची में तीन लाख से अधिक नाम दर्ज हैं, जिनमें पुरुष, महिलाएं और थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं। यह आंकड़ा विशेष गहन संशोधन के बाद तैयार किया गया है, जो 2003 के बाद पहली बार हुआ। 2020 में 63 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था, जो इस बार भी उत्साहजनक भागीदारी की उम्मीद जगाता है।
इस बार तेघरा में सीपीआई को अपनी ऐतिहासिक साख बचाने की चुनौती है, जबकि एनडीए और महागठबंधन दोनों ही इस सीट को अपने पक्ष में करने की रणनीति में जुटे हैं। जातीय संतुलन, संगठनात्मक ताकत और स्थानीय मुद्दों पर पकड़ इस बार भी निर्णायक साबित होगी।
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तेघरा विधानसभा सीट पर 2025 का चुनाव केवल विचारधारा की लड़ाई नहीं, बल्कि जनविश्वास, विकास की मांग और राजनीतिक पुनर्स्थापन की परीक्षा भी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सीपीआई अपनी परंपरा को कायम रख पाएगी या कोई नया समीकरण इस ऐतिहासिक सीट की दिशा बदल देगा।