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Samastipur Assembly Constituency: बिहार के समस्तीपुर जिले की विधानसभा सीट 2025 के चुनाव में एक बार फिर सियासी चर्चा का केंद्र बन गई है। यह सीट न केवल राजनीतिक दृष्टि से अहम है, बल्कि समाजवादी आंदोलन, साहित्यिक विरासत और ऐतिहासिक घटनाओं की साक्षी रही है। हर चुनाव में यहां कांटे की टक्कर देखने को मिलती है, और इस बार भी मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है।
समस्तीपुर विधानसभा क्षेत्र की पहचान जननायक कर्पूरी ठाकुर से जुड़ी है, जिन्होंने 1980 से 1985 तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। उनके पुत्र रामनाथ ठाकुर ने 2000 से 2010 तक जदयू के टिकट पर यहां से जीत दर्ज की। यह सीट समाजवादी विचारधारा की गहराई को दर्शाती है, जहां कांग्रेस ने तीन बार जीत हासिल की, लेकिन असली दबदबा समाजवादी दलों का ही रहा है।
वर्तमान में यह सीट राष्ट्रीय जनता दल के कब्जे में है। मो. अख्तरुल इस्लाम शाहिन 2010 से लगातार तीन बार विधायक चुने गए हैं। 2015 में उन्होंने भाजपा की रेणु कुमारी को बड़े अंतर से हराया, लेकिन 2020 में जदयू की अश्वमेध देवी से मुकाबला बेहद करीबी रहा। जीत का अंतर घटकर मात्र 4,714 वोट रह गया, जो राजद के लिए चिंता का विषय है।
समस्तीपुर विधानसभा का चुनावी गणित जातीय समीकरणों पर आधारित है। मुस्लिम और यादव मतदाता यहां सबसे अधिक हैं, जो राजद का परंपरागत आधार माने जाते हैं। इसके अलावा ब्राह्मण और राजपूत मतदाताओं की भी अच्छी संख्या है, जो चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं। इन वर्गों का रुझान इस बार के चुनाव में निर्णायक साबित हो सकता है।
समस्तीपुर जिला न केवल राजनीतिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। महान कवि विद्यापति ने अपने जीवन का अंतिम समय विद्यापतिनगर में बिताया। 2 जनवरी 1975 को यहां तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या हुई थी, जो आज भी भारत की सबसे रहस्यमय राजनीतिक हत्याओं में गिनी जाती है। यह घटना समस्तीपुर की राजनीतिक चेतना को गहराई से प्रभावित करती है।
समस्तीपुर उत्तर बिहार में रेल कनेक्टिविटी का प्रमुख केंद्र है। यह पूर्वी मध्य रेलवे का मंडल मुख्यालय है और पटना, कोलकाता, दिल्ली जैसे शहरों से सीधा जुड़ा हुआ है। बागमती और गंगा नदियों से घिरा यह क्षेत्र कृषि और व्यापार के लिए उपयुक्त है। हिंदी और मैथिली यहां की प्रमुख भाषाएं हैं, जो सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती हैं।
2025 के विधानसभा चुनाव में समस्तीपुर एक बार फिर बड़ी परीक्षा बनने जा रही है। राजद को अपनी सीट बचाने की चुनौती है, जबकि जदयू और भाजपा जैसे दल इसे छीनने की रणनीति में जुटे हैं। घटते जीत के अंतर और बदलते जातीय समीकरणों के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता किसे अपना प्रतिनिधि चुनती है।
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समस्तीपुर विधानसभा सीट पर यह चुनाव केवल दलों की ताकत की परीक्षा नहीं, बल्कि राजनीतिक विरासत, सामाजिक संतुलन और जन अपेक्षाओं का प्रतिबिंब भी होगा। यह सीट बिहार की सियासी दिशा को प्रभावित करने वाली साबित हो सकती है।