बेलसंड में होगी राजद-जदयू में कांटे की टक्कर (सोर्स- सोशल मीडिया)
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी तेज हो चुकी है और सीतामढ़ी जिले की बेलसंड विधानसभा सीट एक बार फिर राजनीतिक दलों के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई का केंद्र बन गई है। एनडीए और इंडिया ब्लॉक के बीच संभावित महामुकाबले में यह सीट राजद और जदयू के लिए विशेष महत्व रखती है, जहां बीते दो चुनावों में दोनों दलों ने बारी-बारी से जीत दर्ज की है।
बेलसंड विधानसभा सीट पर 2020 के चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने जीत दर्ज की थी। राजद के संजय कुमार गुप्ता ने जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की सुनिता सिंह चौहान को 13,000 से अधिक वोटों से हराया था। इससे पहले 2015 में सुनिता सिंह चौहान ने जदयू के टिकट पर जीत हासिल की थी, जब नीतीश कुमार ने राजद के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। 2020 में गठबंधन बदलने के बाद नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ चुनाव लड़ा, लेकिन बेलसंड में हार का सामना करना पड़ा। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि यह सीट गठबंधन की रणनीति और उम्मीदवार की लोकप्रियता पर काफी निर्भर करती है।
बेलसंड विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह से ग्रामीण है, जिसमें बेलसंड, परसौनी और तरियानी चौक जैसे इलाके शामिल हैं। यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है। धान, गेहूं, मक्का और दालें प्रमुख फसलें हैं। सिंचाई के लिए नहरों और नलकूपों का उपयोग होता है, लेकिन बाढ़ और अपर्याप्त सुविधाएं उत्पादन को प्रभावित करती हैं।
स्थानीय लोग गाय, भैंस और बकरी पालन जैसे पशुपालन कार्यों से भी आय अर्जित करते हैं। दूध और डेयरी उत्पादों की बिक्री आम है। इसके बावजूद, रोजगार के सीमित अवसरों के कारण बड़ी संख्या में लोग दिहाड़ी मजदूरी के लिए दिल्ली, मुंबई और अन्य शहरों की ओर पलायन कर चुके हैं।
बेलसंड विधानसभा क्षेत्र कई बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा है, जो आगामी चुनाव में प्रमुख मुद्दे बन सकते हैं:
1. बाढ़ की समस्या: कोसी नदी के प्रभाव के कारण हर साल बाढ़ आती है, जिससे फसलों को भारी नुकसान होता है और जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
2. सड़कें और परिवहन: क्षेत्र की सड़कें जर्जर हैं। बरसात के मौसम में कीचड़मय रास्तों से आवागमन बेहद कठिन हो जाता है।
3. स्वास्थ्य सेवाएं: अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तो हैं, लेकिन डॉक्टरों और उपकरणों की भारी कमी है। गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए लोगों को मुजफ्फरपुर या पटना जाना पड़ता है।
4. शिक्षा व्यवस्था: स्कूलों में शिक्षकों की कमी और बुनियादी सुविधाओं का अभाव बच्चों की पढ़ाई को प्रभावित करता है।
5. बेरोजगारी व पलायन : आसपास के इलाके में रोजगार के सीमित अवसरों के कारण बड़ी संख्या में लोग दिहाड़ी मजदूरी के लिए दिल्ली, मुंबई और अन्य शहरों की ओर पलायन कर चुके हैं।
इन समस्याओं को लेकर जनता में असंतोष है, और यही मुद्दे चुनावी प्रचार का केंद्र बन सकते हैं, जिससे सत्ता पक्ष को पार पाना होगा, नहीं तो सीट का परिणाम दूसरे खेमे में जा सकता है।
बेलसंड विधानसभा की कुल जनसंख्या 4,66,187 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 2,45,142 और महिलाओं की संख्या 2,21,045 है। चुनाव आयोग के 1 जनवरी 2024 के आंकड़ों के अनुसार, इस क्षेत्र में कुल मतदाता 2,79,742 हैं। इनमें पुरुष मतदाता 1,47,917, महिला मतदाता 1,31,824 और थर्ड जेंडर वोटर 1 हैं। महिला मतदाताओं की संख्या भी काफी है, जो सामाजिक मुद्दों पर निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।
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बेलसंड विधानसभा सीट पर राजद और जदयू के बीच मुकाबला नाक की लड़ाई बन चुका है। दोनों दलों के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न है। जहां राजद अपनी जीत को दोहराना चाहेगा, वहीं जदयू वापसी की कोशिश में जुटा है। भाजपा का प्रभाव भी यहां नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अब देखना यह है कि बेलसंड की जनता किसे अपना प्रतिनिधि चुनती है विकास के वादों को, गठबंधन की रणनीति को या स्थानीय मुद्दों की समझ रखने वाले उम्मीदवार को।