लौरिया विधानसभा सीट, डिजाइन फोटो (नवभारत)
Lauriya Assembly Seat Profile: बिहार के पश्चिम चंपारण जिले की लौरिया विधानसभा सीट एक बार फिर चुनावी चर्चाओं में है। कभी कांग्रेस का गढ़ रही यह सीट अब भाजपा का मजबूत किला बन चुकी है। 2025 के विधानसभा चुनाव में यहां का मुकाबला दिलचस्प होने की संभावना है, जहां पुराने समीकरणों के साथ नए राजनीतिक संकेत भी उभर रहे हैं।
लौरिया विधानसभा क्षेत्र ने 1957 से 2000 तक कांग्रेस को सात बार जीत दिलाई, जिससे यह सीट पार्टी का मजबूत आधार बन गई थी। लेकिन 2000 के बाद राजनीतिक हवा बदल गई। जेडीयू और भाजपा ने यहां अपनी पकड़ मजबूत की। 2010 में निर्दलीय उम्मीदवार विनय बिहारी ने जीत दर्ज की, जो बाद में भाजपा में शामिल हो गए और वर्तमान में भी विधायक हैं।
यह सीट पहले अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी, लेकिन 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद इसे सामान्य वर्ग के लिए खोल दिया गया। इस बदलाव ने राजनीतिक दलों को नए समीकरण गढ़ने का अवसर दिया। भाजपा ने इस बदलाव का लाभ उठाते हुए संगठनात्मक मजबूती के साथ क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत की।
2024 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, लौरिया विधानसभा क्षेत्र की कुल जनसंख्या 4.40 लाख से अधिक है। इसमें पुरुषों की संख्या 2.34 लाख और महिलाओं की संख्या 2.06 लाख है। मतदाताओं की संख्या 2.62 लाख से अधिक है, जिसमें महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय है। यह आंकड़े चुनावी रणनीति तय करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
लौरिया विधानसभा क्षेत्र में योगापट्टी सामुदायिक विकास खंड और लौरिया प्रखंड की 17 ग्राम पंचायतें शामिल हैं। इनमें सिसवनिया, कटैया, मठिया, लौरिया, बेलवा लखनपुर, गोबरौरा, बहुअरवा, धोबनी धर्मपुर, धमौरा, साथी और सिंहपुर सतवरिया जैसे गांव शामिल हैं। इन पंचायतों का सामाजिक और जातीय मिश्रण चुनावी समीकरणों को प्रभावित करता है।
लौरिया का ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है। नंदनगढ़ में नंद वंश और चाणक्य द्वारा बनवाए गए महलों के अवशेष आज भी मौजूद हैं। यह स्थल भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेषों पर बने स्तूप का स्थान माना जाता है, जो इसे धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाता है।
लौरिया में स्थित मौर्य सम्राट अशोक द्वारा स्थापित विशाल स्तंभ इस क्षेत्र की ऐतिहासिक पहचान को और गहरा करता है। लगभग 2300 वर्ष पुराना यह स्तंभ 35 फीट ऊंचा और 34 टन वजनी है। इसका आधार 35 इंच और शीर्ष 22 इंच चौड़ा है। यह स्तंभ न केवल पुरातात्विक महत्व रखता है, बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी संभावनाओं से भरा हुआ है।
भाजपा इस सीट पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। विनय बिहारी का स्थानीय प्रभाव और संगठन की मजबूती पार्टी को बढ़त दिला सकती है। वहीं, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस सीट को फिर से हासिल करने की रणनीति बना रहे हैं। स्थानीय मुद्दे, विकास की गति और जातीय समीकरण इस बार भी निर्णायक भूमिका निभाएंगे।
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लौरिया विधानसभा सीट पर 2025 का चुनाव केवल सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि विरासत, विकास और जनविश्वास की परीक्षा भी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा अपनी स्थिति बरकरार रखती है या जनता एक बार फिर बदलाव का संकेत देती है।