सुप्रीम कोर्ट (फोटो- सोशल मीडिया)
New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के दो जजों को सजा के तौर पर एक हफ्ते के विशेष न्यायिक प्रशिक्षण से गुजरने का आदेश दिया है। मामला 1.9 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के एक केस में दो आरोपियों को जमानत देने से जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देने के तरीके के आलोचना करते हुए यह निर्देश दिया। सााथ ही कहा कि, उन्होंने पहले के हाई कोर्ट के फैसलों के बाध्यकारी महत्व को नजरअंदाज कर दिया था।
न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि कड़कड़डूमा अदालत के अतिरिक्त मुख्य महानगर दंडाधिकारी (ACMM) और सत्र न्यायाधीश ने आरोपी धर्मपाल सिंह राठौर और उनकी पत्नी शिक्षा राठौर को नवंबर 2023 और अगस्त 2024 में जमानत देने के दौरान तथ्यों को नजरअंदाज किया।
जानकारी के मुताबिक, नेटसिटी सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड से जुड़े ₹1.9 करोड़ की धोखाधड़ी वाले जमीन सौदे में आरोपी दंपति को दिल्ली हाई कोर्ट ने अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था। अदालत ने उन्हें झूठे हलफनामे दाखिल करने और अदालतों को गुमराह करने के लिए कड़ी फटकार भी लगाई थी।
न्यायपीठ ने टिप्पणी की, “अगर हम अतिरिक्त मुख्य महानगर दंडाधिकारी द्वारा आरोपियों को जमानत दिए जाने और सत्र न्यायाधीश द्वारा इसमें हस्तक्षेप करने से इनकार करने को नजरअंदाज करते हैं, तो यह हमारे न्यायिक कर्तव्य में चूक होगी।” इन परिस्थितियों को देखते हुए, पीठ ने निर्देश दिया कि संबंधित न्यायिक अधिकारी कम से कम सात दिनों के विशेष न्यायिक प्रशिक्षण से गुजरें।
इसके साथ ही, अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से अपील किया कि दिल्ली न्यायिक अकादमी में ऐसा प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जाए, जो न्यायिक अधिकारियों को हाई कोर्ट के फैसलों के अनुपालन और अभियुक्तों के आचरण के मूल्यांकन के प्रति संवेदनशील बना सके। साथ ही, न्यायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम समिति के अध्यक्ष से भविष्य के प्रशिक्षण मॉड्यूल पर ध्यान केंद्रित करने को कहा गया है।
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पीठ ने केवल न्यायिक अधिकारियों तक ही बात सीमित नहीं रखी। उसने दिल्ली पुलिस को भी निर्देश दिया कि वे उन जांच अधिकारियों (IO) के आचरण की व्यक्तिगत रूप से जांच करें, जिन्होंने इस मामले में हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता को नजरअंदाज किया था।