गोविंदगंज विधानसभा सीट(डिजाइन फोटो)
Govindganj Assembly Constituency Profile: पूर्वी चंपारण जिले की गोविंदगंज सीट न केवल अपने ऐतिहासिक राजनीतिक बदलावों के लिए जानी जाती है, बल्कि यहां के मतदाता हर बार अप्रत्याशित फैसले लेकर बड़े दलों की रणनीतियों को चुनौती देते रहे हैं।
गोविंदगंज का राजनीतिक इतिहास 1952 से शुरू होता है, जब कांग्रेस ने लगातार चार चुनावों (1952–1967) में जीत दर्ज की और इसे अपना मजबूत गढ़ बना लिया। लेकिन 1980 के बाद से कांग्रेस इस सीट पर अपनी पकड़ खो बैठी। 2008 में हुए परिसीमन ने समीकरणों को और उलझा दिया, जब दक्षिणी बरियारिया, पहाड़पुर और अरेराज जैसे क्षेत्रों को इस विधानसभा में शामिल किया गया। इससे जातीय और क्षेत्रीय संतुलन में बदलाव आया और नए राजनीतिक समीकरण उभरने लगे।
2020 के चुनाव में भाजपा ने इस सीट पर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। पार्टी के उम्मीदवार सुनील मणि तिवारी ने आक्रामक प्रचार अभियान और संगठनात्मक मजबूती के दम पर कांग्रेस के ब्रजेश कुमार को हराया। तिवारी को 65,544 वोट मिले, जबकि ब्रजेश कुमार को 37,620 वोटों से संतोष करना पड़ा। यह जीत भाजपा के लिए निर्णायक रही, जिसने यह साबित किया कि पार्टी का यहां एक ठोस वोट बैंक तैयार हो चुका है।
2015 में लोजपा ने इस सीट पर अपना परचम लहराया। राजू तिवारी ने कांग्रेस के ब्रजेश कुमार को बड़े अंतर से हराकर 74,685 वोट हासिल किए। यह जीत लोजपा के लिए न केवल प्रतिष्ठा की बात थी, बल्कि यह संकेत भी था कि क्षेत्रीय दल भी गोविंदगंज में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
2010 में जदयू की मीना द्विवेदी ने 33,859 वोटों के साथ लोजपा के राजू तिवारी (25,454 वोट) को हराया था। यह जीत विकास और स्थानीय मुद्दों पर आधारित राजनीति की सफलता का उदाहरण बनी। जदयू की रणनीति ने यह दिखाया कि अगर सही मुद्दों को उठाया जाए, तो मतदाता दलों को मौका देने से नहीं हिचकिचाते।
2025 के चुनावी माहौल में भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी पिछली जीत को दोहराने की है। सुनील मणि तिवारी की लोकप्रियता और संगठन की मजबूती के बावजूद, विपक्षी दलों की रणनीति और गठबंधन समीकरण इस बार मुकाबले को और दिलचस्प बना सकते हैं। कांग्रेस, लोजपा और जदयू तीनों दल इस सीट पर अपनी वापसी की कोशिश में जुटे हैं।
कांग्रेस के ब्रजेश कुमार लगातार चुनाव लड़ते रहे हैं, जिससे उन्हें क्षेत्र में पहचान मिली है। हालांकि, पिछली दो हारों ने उनकी रणनीति पर सवाल खड़े किए हैं। लोजपा के राजू तिवारी भी एक बार फिर मैदान में उतर सकते हैं, जबकि जदयू स्थानीय मुद्दों को लेकर सक्रिय है।
गोविंदगंज के मतदाता हमेशा से राजनीतिक दलों को चौंकाते रहे हैं। यहां का जनादेश कभी एकतरफा नहीं रहा। हर चुनाव में मतदाता नए समीकरण गढ़ते हैं और दलों को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर करते हैं। जातीय संतुलन, विकास के मुद्दे, स्थानीय नेतृत्व और पार्टी की छवि ये सभी कारक यहां के चुनावी परिणामों को प्रभावित करते हैं।
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गोविंदगंज विधानसभा सीट एक बार फिर निर्णायक मोड़ पर है। भाजपा अपनी जीत दोहराने की कोशिश में है, जबकि विपक्षी दल इसे वापसी का मंच मान रहे हैं। मतदाताओं की चुप्पी और चुनावी माहौल इस बात का संकेत दे रहे हैं कि मुकाबला इस बार भी दिलचस्प और अप्रत्याशित होगा। अब देखना यह है कि क्या भाजपा अपनी पकड़ बनाए रखेगी या गोविंदगंज एक बार फिर राजनीतिक बदलाव का गवाह बनेगा। यह तो 14 नवंबर को मतगणना के बाद ही पता चलेगा।