
बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Kumhrar Assembly Constituency: बिहार की राजधानी पटना स्थित कुम्हरार विधानसभा सीट सिर्फ एक चुनावी क्षेत्र नहीं, बल्कि उस गौरवशाली मगध साम्राज्य की आत्मा है, जहां से भारत का सबसे बड़ा साम्राज्य शुरू हुआ था। यह सीट, जिसे पहले ‘पटना सेंट्रल’ के नाम से जाना जाता था, पिछले 35 वर्षों से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का अभेद्य किला बनी हुई है। इस बार भाजपा के कद्दावर नेता अरुण कुमार सिन्हा के सामने जीत का छक्का लगाने की चुनौती है।
कुम्हरार सीट पर भाजपा का वर्चस्व 1980 के दशक में शुरू हुआ और तब से, 1985 के एक अपवाद को छोड़कर, यह सीट लगातार भगवा पार्टी के पास है। इस किले को सबसे पहले पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने मजबूती दी, जिन्होंने 1990 से 2000 तक लगातार तीन बार यहां से जीत हासिल की। उनके बाद, अरुण कुमार सिन्हा ने इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत की और लगातार पांच बार विधायक चुने गए हैं।
2020 के विधानसभा चुनाव में भी सिन्हा ने राजद के धर्मेंद्र कुमार को 26,463 मतों के बड़े अंतर से मात दी थी। लोकसभा चुनावों में भी भाजपा ने यहां लगातार 2014, 2019 और 2024 में बड़ी बढ़त हासिल की है, जो इस क्षेत्र में पार्टी की मजबूत पकड़ को दर्शाती है।
कुम्हरार पूरी तरह से एक शहरी निर्वाचन क्षेत्र है, जहां जातीय समीकरणों की भूमिका निर्णायक रही है। दशकों से कायस्थ वोट बैंक ही भाजपा की जीत में निर्णायक साबित होता रहा है, जिससे यह सीट भाजपा के लिए ‘सुरक्षित’ बन गई है। कायस्थों के अलावा, भूमिहार, ब्राह्मण और अति पिछड़ा वर्ग के वोट भी काफी ज्यादा संख्या में हैं, जिनका झुकाव पारंपरिक रूप से भाजपा की ओर रहा है।
कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र में यादव और मुस्लिम मतदाता (11.6 प्रतिशत) भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराते हैं। विपक्ष (राजद/कांग्रेस) को इस किले में सेंध लगाने के लिए इन वर्गों के वोटों को एकजुट करने की चुनौती है।
कुम्हरार का महत्व राजनीति से कहीं बढ़कर है। यह वही पवित्र भूमि है, जहां शक्तिशाली पाटलिपुत्र नगरी बसी थी। राजा अजातशत्रु ने राजधानी को राजगीर से यहां स्थानांतरित किया था। यह स्थान चाणक्य के मार्गदर्शन में चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा मौर्य साम्राज्य की नींव रखने का गवाह है। बाद में सम्राट अशोक की राजधानी भी यही बनी, जिनका साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर बांग्लादेश तक फैला था।
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कुम्हरार विधानसभा सीट 2025 में एक बार फिर भाजपा के लिए अपनी साख बनाए रखने और अरुण कुमार सिन्हा के लिए जीत का ‘छक्का’ लगाने की चुनौती होगी, जिसके सामने विपक्ष को कोई चमत्कार ही बचा सकता है।






