
राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार और पीएम मोदी
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन और एनडीए, दोनों ने अपनी सियासी बिसात बिछा दी है। लेकिन,दोनों गठबंधन की नजर दलित वोट बैंक पर टिकी है। इसको राजनीति मजबूरी कहे या गठबंधन की जरूरत। इस वोट बैंक को साधने के लिए देश के दोनो बड़ी पार्टियां अपने सहयोगी दल पर ही निर्भर हैं। बिहार की 243 में से 38 सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। कारण, बिहार में दलित वोटर्स की तादाद 20 फीसदी है, जिसमें अलग-अलग जातियां शामिल हैं।
बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों प्रमुख गठबंधनों के बीच दलित वोट बैंक को साधने की होड़ मची है। एनडीए के खेमे में दलित तबके से आने वाले चिराग पासवान और जीतन राम मांझी हैं तो कांग्रेस ने अपने विधायक राजेश राम को प्रदेश में पार्टी की कमान देकर दलित वोट बैंक पर एनडीए का एकाधिकार तोड़ने का प्रयास किया है।
इस दफा एनडीए मे सबसे ज्यादा जदयू ने 15 सीटों पर एससी प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं। इसके बाद बीजेपी ने 11 एससी सीटों पर अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं। ये दोनों 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। इसी प्रकार महागठबंधन में 143 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। आरजेडी ने 143 सीटों में से 20 सीटों पर एससी कोटे के प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं। भाकपा माले 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और छह सीटों पर एससी कोटे के प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारे हैं। इसी प्रकार 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही कांग्रेस ने 11 सीटों पर एससी प्रत्याशी चुनाव मैदन में उतारे हैं। भाकपा दो, माकपा और वीआईपी एक-एक सीट पर चुनाव लड़ रही है।
बिहार में 20 फीसदी दलित वोटर्स हैं। इसमें सबसे बडी हिस्सेदारी रविदास समाज की है। रविदास की आबादी बिहार में 31
फीसदी है और लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में इनकी ऐसी ही संख्या है। चुनाव के नतीजे पर ये खास असर डालते हैं। रविदास के बाद दलितों में दूसरी सबसे बड़ी आबादी पासवान जाति की है। बिहार में पासवान 30 फीसदी हैं। ये भी हर विधानसभा में हैं। यह कारण है कि इनकी भूमिका भी जीत हार में महत्वपूर्ण है। दलितों में तीसरी बड़ी आबादी मुसहर यानी मांझी समाज की है। दलित तबके में मुसहर आबादी 14 फीसदी है।
243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में 38 सीटें ऐसी हैं जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। फिलहाल विधानसभा में इन 38 सीटों में से 21 पर एनडीए का कब्जा है। जबकि 17 सीटें पर महागठबंधन का कब्जा है। इसमें बीजेपी और जेडीयू के सबसे अधिक दलित विधायक मौजूदा विधानसभा में ही हैं। 2020 के विधानसभा में बीजेपी के 9 और जेडीयू के 8 दलित विधायक हैं। लेकिन एनडीए 38 सुरक्षित सीटों पर ज्यादा से ज्यादा सीटों पर अपना कब्जा चाहेगी। दोनों गठबंधनों की तरफ से जीत की कोशिश होगी।
दलित विधायकों की संख्या के लिहाज से आंकड़े एनडीए के पक्ष में हैं। लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में इसका बड़ा लिटमस टेस्ट होना है। एनडीए में इसकी पूरी जिम्मेवारी चिराग पासवान और जीतन राम मांझी पर होगी। दलितों में रविदास समाज के बाद दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी पासवान जाति की है। बिहार में चिराग पासवान ने वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग चुनाव लड़कर नीतीश कुमार के साथ जो खेला किया था वो सभी को पता है।
नीतीश की पार्टी 43 सीटों पर सिमट गई थी। चिराग की पार्टी केवल एक सीट पर ही जीत हासिल कर पाई थी। जेडीयू के लिए ज्यादातर सीटों पर हार का फैक्टर चिराग पासवान बने थे। एनडीए के अच्छी बात ये हैं कि चिराग इस चुनाव में उनके साथ हैं। इससे यह संभावना व्यक्त किया जा रहा है कि एनडीए को इसका लाभ मिलेगा।
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एनडीए का घटक दल ‘हम’ के नेता जीतन राम मांझी है। बिहार में उनके समुदाय मुसहर के 14 फीसदी वोटर्स हैं। एनडीए को उम्मीद है कि जीतन राम मांझी इस वोट बैंक के एनडीए में ट्रांसफर करवा देंगे। बीते दो दशक में नीतीश ने दलित वोट बैंक को खूब साधा है। लेकिन क्या इस दफा भी दलित राजनीतिक ढलान पर खड़े नीतीश कुमार पर भरोसा करेंगे या फिर पाला बदलेंगे।






