
दीघा विधानसभा, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Digha Assembly Constituency: बिहार की राजधानी पटना स्थित दीघा विधानसभा सीट सिर्फ एक चुनावी क्षेत्र नहीं, बल्कि पटना के सबसे समृद्ध और पॉश इलाकों का प्रतिनिधित्व करती है। यह सीट अपनी महिला मतदाताओं की निर्णायक भूमिका के लिए जानी जाती है, जिसके बारे में कहा जाता है कि जिस ओर महिलाओं का रुख होता है, जीत उसी पार्टी की होती है।
2008 में अस्तित्व में आने के बाद से, इस पूरी तरह शहरी सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की लगातार मजबूत होती पकड़ ने इसे पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र का एक अभेद्य किला बना दिया है।
संजीव चौरसिया की हैट्रिक की ओर दीघा विधानसभा सीट का चुनावी सफर छोटा लेकिन भाजपा के लिए सफल रहा है।
शुरुआत: 2010 में जदयू की पूनम देवी ने यह सीट जीती थी।
भाजपा का उदय: 2015 में, जदयू से गठबंधन टूटने के बाद, भाजपा के संजीव चौरसिया ने जीत हासिल की।
लगातार जीत: 2020 के विधानसभा चुनाव में, संजीव चौरसिया ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की। उन्होंने सीपीआई (एमएल) की शशि यादव को 46,234 वोटों के बड़े अंतर से हराकर अपनी पकड़ और मजबूत कर ली।
समृद्ध शहरी आधार: यह क्षेत्र केवल 1.76 प्रतिशत ग्रामीण मतदाताओं के साथ पूरी तरह से शहरी है, जिसमें पाटलिपुत्र हाउसिंग कॉलोनी जैसे पॉश इलाके शामिल हैं। यह शहरी पहचान और विकसित इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस ही भाजपा की मजबूत स्थिति का मुख्य स्तंभ है।
जातीय समीकरण: कायस्थ फैक्टर और महिला वोट बैंक। दीघा की जीत का गणित जातीय समीकरणों से ज्यादा शहरी मतदाताओं की विचारधारा और महिला वोट बैंक पर निर्भर करता है।
कायस्थ प्रभुत्व: यद्यपि आधिकारिक डेटा नहीं है, लेकिन कायस्थ समुदाय की बड़ी संख्या मानी जाती है, जिसे पारंपरिक रूप से भाजपा का मजबूत समर्थक माना जाता है।
अन्य वोट बैंक: यहां अनुसूचित जाति के मतदाता 10.68 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाता 9.4 प्रतिशत हैं, जिनके वोट का विभाजन चुनावी परिणाम को प्रभावित करता है।
महिला वोटर की शक्ति: महिला मतदाताओं की बड़ी संख्या और उनका रुझान इस सीट पर किसी भी पार्टी का भाग्य तय करने का माद्दा रखता है।
जेपी सेतु: दीघा की पहचान उसकी कनेक्टिविटी से जुड़ी है, जिसका श्रेय जेपी सेतु को जाता है।
भारत का दूसरा सबसे लंबा पुल: जेपी सेतु (जयप्रकाश नारायण सेतु), जो दीघा को सारण जिले के सोनपुर से जोड़ता है, 4,556 मीटर लंबा रेल-सह-सड़क पुल है। यह असम के बोगीबील पुल के बाद भारत का दूसरा सबसे लंबा पुल है।
राजनीतिक विवाद: इस पुल का निर्माण दशकों की राजनीतिक खींचतान (रामविलास पासवान बनाम लालू प्रसाद यादव) के बाद हुआ, जिसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हस्तक्षेप से पूरा किया गया।
कनेक्टिविटी में बदलाव: इस पुल ने दीघा की कनेक्टिविटी को बदल दिया और पाटलिपुत्र जंक्शन रेलवे स्टेशन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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2025 का चुनाव यह तय करेगा कि क्या भाजपा के संजीव चौरसिया लगातार तीसरी जीत दर्ज कर इस गढ़ को अभेद्य बनाते हैं या विरोधी दल इस सीट पर कोई बड़ी सेंध लगाने में सफल होते हैं।






