नरकटियागंज विधानसभा सीट (फोटो-सोशल मीडिया)
Bihar Assembly Election 2025: पश्चिम चंपारण जिले की नरकटियागंज विधानसभा सीट उत्तर बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह क्षेत्र वाल्मीकि नगर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है और 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया। वाणिज्यिक और प्रशासनिक केंद्र होने के साथ-साथ यह सीट अपनी परिवहन कनेक्टिविटी (नरकटियागंज जंक्शन) और गन्ना व धान की खेती के लिए जानी जाती है।
यह सीट राजनीतिक रूप से इसलिए भी रोचक है क्योंकि यहाँ मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 30 प्रतिशत होने के बावजूद, पिछले चार चुनावों में से तीन में भाजपा ने जीत हासिल की है।
नरकटियागंज का चुनावी इतिहास भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़े मुकाबले का गवाह रहा है। 2010 में भाजपा के सतीश चंद्र दुबे ने कांग्रेस को हराया। वहीं 2014 के उपचुनाव भाजपा की रश्मि वर्मा ने कांग्रेस पर जीत दर्ज की। फिर से 2015 के चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की और विनय वर्मा ने भाजपा की वरिष्ठ नेता रेनू देवी को हराया।
2020 में भाजपा ने फिर से कब्जा जमाया और रश्मि वर्मा ने कांग्रेस के विनय वर्मा को 21,134 मतों से शिकस्त दी। इस चुनाव में भाजपा को 45.85% वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस 33.02% पर रही थी। यह सीट लगातार दो पार्टियों की जीत का क्रम तोड़ती रही है, जिससे 2025 में भाजपा के लिए चुनौती बढ़ जाती है।
नरकटियागंज में जातीय समीकरण और मतदान का ध्रुवीकरण बेहद अहम है। यहां पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 80 से 85 हज़ार के बीच है, जो कुल मतदाताओं का लगभग 30% है। यह वर्ग परंपरागत रूप से कांग्रेस या राजद के पाले में जाता रहा है। साथ ही भाजपा को इलाके में संगठनात्मक मजबूती और सवर्ण मतदाताओं का स्थायी समर्थन मिलता रहा है। अनुसूचित जाति (40,232) और अनुसूचित जनजाति (4,037) के मतदाता भी यहाँ निर्णायक हैं, जो जीत हार का समीकरण बनाया करते हैं।
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2020 में भाजपा ने स्पष्ट बहुमत से जीत दर्ज की थी, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में स्थिति बदली। एनडीए की बढ़त यहाँ घटकर केवल 7,035 वोट रह गई। यह संकेत देता है कि आगामी विधानसभा चुनाव में मुकाबला कहीं ज्यादा कड़ा होगा और इंडिया गठबंधन (कांग्रेस-राजद) भाजपा को कड़ी टक्कर देने की तैयारी में है।
नरकटियागंज की जनता विकास के मुद्दे जैसे-सड़क, रेल नेटवर्क और अपनी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर समर्थन की उम्मीद रखती है। 2025 में भाजपा को अपनी संगठनात्मक ताकत पर भरोसा होगा, जबकि कांग्रेस को मुस्लिम-यादव गठबंधन की एकजुटता पर। यह मुकाबला बेहद रोचक और अस्थिर होने की उम्मीद है।