बिहार के पूर्व मुखिया जीतन राम मांझी (डिजाइन फोटो)
Siyasat-E-Bihar: बिहार की राजनैतिक कहानियों पर उपन्यास या कहानी लिखना तो आम है, यहां के सियासी शबाहतों पर महाग्रंथ भी लिखे जा सकते हैं। लेकिन आज के व्यस्ततम समय में आपके पास महाग्रंथ पढ़ने का वक्त नहीं होगा। इस बात को समझते हुए और आपके समय की कद्र करते हुए हम यहां के सियासी घटनाक्रमों को ‘सियासत-ए-बिहार’ सीरीज के अन्तर्गत किस्से के रूप में लेकर हाजिर हो रहे हैं। इस कड़ी में बात उस मुख्यमंत्री की जिसने सीएम रहते हुए कमीशन लेने और देने की बात खुलेआम स्वीकारी थी। तो चलिए शुरू करते हैं…
तारीख थी 6 नवंबर 2014 और जगह पटना का श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल। यहां एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बिहार के पहले महादलित सीएम ने कहा कहा, “मैं थोड़े समय के लिए मुख्यमंत्री हूं। आप सब जानते हैं। 2015 के बाद गठबंधन की सरकार बनेगी, और यह जरूरी नहीं कि गठबंधन मांझी को अपना नेता स्वीकार करे। मांझी में कोई बहुत सुरखाब के पंख तो लगे नहीं हैं। उन्हें न तो इसकी उम्मीद है और न ही भरोसा। जब तक मेरे पास समय है, मैं अपनी बात कहता रहूंगा।” जीतन राम मांझी लगभग नौ महीने तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे, इस दौरान उन्होंने अपने विवादास्पद बयानों से बिहार की राजनीति में भूचाल ला दिया। उन्होंने एक के बाद एक खुलकर अपनी बात रखी और हंगामा मच गया।
जीतन राम मांझी बिहार के पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने सार्वजनिक रूप से कमीशनखोरी और रिश्वतखोरी की बात स्वीकार की थी। 12 फरवरी 2015 को पटना के गांधी मैदान में शिक्षकों की एक सभा हुई। इस बैठक में मुख्यमंत्री मांझी अचानक कहने लगे, “पुल बनाने से ज़्यादा पैसा खंभों के निर्माण में खर्च होता है। ये इंजीनियर और टेक्नोक्रेट, जिन्होंने करोड़ों रुपये कमाए हैं, कुछ ठेकेदार को देते हैं और कुछ मुझे। मुझे भी कमीशन मिलता है। अब से मैं कमीशन नहीं लूंगा और उस पैसे का इस्तेमाल राज्य के शिक्षकों के लिए करूंगा।” मुख्यमंत्री मांझी के इस कबूलनामे से बिहार में भूचाल आ गया और नीतीश कुमारके हाथ-पांव फूल गए।
इससे पहले अगस्त 2014 में मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने रिश्वत देने की बात स्वीकार की थी। उन्होंने भ्रष्टाचार से जुड़ी अपनी कहानी सुनाई। उस समय वे मंत्री थे फिर भी उन्हें अपना काम करवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ी। भ्रष्ट अधिकारी पर इसका भी असर नहीं हुआ कि वह एक मंत्री से रिश्वत मांग रहा है। गया जिले में उनके घर का बिजली बिल 25,000 रुपये बढ़ गया था। औसतन उन्हें लगभग 5,000 रुपये देने पड़ते थे। बिजली का बिल बढ़ने से उनका परिवार परेशान हो गया। फिर एक पड़ोसी ने बिजली का बिल कम करने का एक तरीका सुझाया। उनके सुझाव पर पैसे देकर बिल कम करवाया गया। बाद में जीतन राम मांझी ने बिजली बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी सूचना दी और भ्रष्ट अधिकारी को दंडित किया गया।
कोई भी मुख्यमंत्री अगर खुलेआम भ्रष्ट इंजीनियरों से कमीशन लेने या अपना काम करवाने के लिए रिश्वत देने की बात स्वीकार करता, तो हंगामा मचना तय है। जैसे-जैसे मामला बढ़ता गया, जेडीयू के भीतर सीएम मांझी की स्थिति कमजोर होती गई। ये बयान नीतीश कुमार के सुशासन के खिलाफ थे। विवाद बढ़ने पर मुख्यमंत्री मांझी ने कहा, “मैंने बिजली बिल के भुगतान के लिए जिन पैसों का ज़िक्र किया था, वे बहुत पहले के हैं। यह पैसे रिश्वत के नहीं बल्कि मिठाई के लिए थे।” उन्होंने इस विवाद के लिए मीडिया को जिम्मेदार ठहराया और दावा किया कि मीडिया ने उनके बयानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।
बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी (सोर्स- सोशळ मी)
मुख्यमंत्री के रूप में जीतन राम मांझी बेहद मुखर थे। उन्होंने ऐसी बातें भी कहीं जिनसे आम नेता कतराते थे। एक बार, नवनियुक्त ग्रामीण विकास अधिकारियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “नीतीश कुमार के प्रयासों से राजनीतिक कार्यकर्ता ईमानदार हो गए हैं, लेकिन अधिकारी बेईमान बने हुए हैं। मैं जहां भी गया, लोगों ने सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार की शिकायत की।”
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शासन में भ्रष्टाचार पर मुख्यमंत्री मांझी के अपने विचार थे। उनका मानना था कि नीतीश कुमार के शासन में बिहार तेजी से प्रगति कर रहा था, लेकिन भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से लगाम नहीं लग पाई थी। जीतन राम मांझी के इन बयानों से नीतीश कुमार असहज महसूस करते थे। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति को सख्ती से लागू किया था। उन्होंने कई भ्रष्ट अधिकारियों की अचल संपत्तियां जब्त कीं और उन पर स्कूल खोले।
2014 के लोकसभा चुनाव से कुछ समय पहले नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ अपना गठबंधन तोड़ दिया। भाजपा के अलग होने के कारण उन्होंने बहुमत खो दिया। उन्होंने कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से अल्पमत की सरकार चलाई। नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन की एक विडंबना यह है कि उन्होंने कांग्रेस के समर्थन से भी सरकार चलाई है। 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने बिना किसी गठबंधन के अकेले चुनाव लड़ा था। जेडीयू को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा। सभी 40 सीटों पर उम्मीदवार उतारने के बावजूद, उन्हें केवल दो सीटों पर ही जीत मिली।
जीतन राम मांझी व नीतीश कुमार (सोर्स- सोशल मीडिया)
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बात से आहत थे कि उनके “सुशासन” के बावजूद राज्य के मतदाताओं ने उन्हें नकार दिया। हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने 17 मई 2014 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उस समय जीतन राम मांझी नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद सहयोगी थे। वे नीतीश मंत्रिमंडल में अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण मंत्री थे। नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को अगला मुख्यमंत्री नामित किया। 20 मई 2014 को जीतन राम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री बने।
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जब वे मुख्यमंत्री बने तो भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने उन्हें “डमी मुख्यमंत्री” कहा था। उनके कहने का मतलब था कि जीतन राम मांझी केवल नाम के मुख्यमंत्री हैं। सत्ता की असली बागडोर नीतीश कुमार के हाथों में ही रहेगी। जीतन राम मांझी का मुख्यमंत्री बनना पूरी तरह से अप्रत्याशित था। इसके तुरंत बाद उनकी कार्यशैली और विवादास्पद बयानों ने उन्हें नीतीश कुमार से दूर करना शुरू कर दिया। फरवरी 2015 तक पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री मांझी की स्थिति नाजुक हो गई।
9 फरवरी को उन्हें जदयू से निष्कासित कर दिया गया। यह टकराव और बढ़ गया। मुख्यमंत्री मांझी विधानसभा भंग करना चाहते थे, लेकिन कैबिनेट ने इसे मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया। अब नीतीश के समर्थक उन्हें किसी भी तरह मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते थे। नीतीश कुमार ने अपना बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल के सामने 128 विधायकों की परेड कराई। इसके बाद राज्यपाल ने जीतन राम मांझी को 20 फरवरी तक बहुमत साबित करने को कहा। हालांकि, विश्वास मत से ठीक पहले मुख्यमंत्री मांझी ने इस्तीफा दे दिया।