
2025 में इन महिलाओं ने रच दिया इतिहास, डिजाइन फोटो
Year Ender 2025: दुनिया की राजनीति में समय-समय पर कुछ ऐसे चेहरे उभरते हैं जो सत्ता, संघर्ष और सामाजिक बदलाव की नई परिभाषा गढ़ते हैं। हाल के वर्षों में महिला नेताओं की ऐसी ही एक श्रृंखला देखने को मिली है जिन्होंने अपने-अपने देशों में न केवल इतिहास रचा, बल्कि वैश्विक विमर्श को भी नई दिशा दी।
जापान की सानाए ताकाइची इस बदलाव की सबसे प्रमुख मिसाल हैं। अक्टूबर में उन्होंने जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में पद संभाला। सख्त राष्ट्रवादी विचारधारा के लिए जानी जाने वाली ताकाइची सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रैटिक पार्टी (एलडीपी) की नेता हैं। 1955 में गठित यह पार्टी दशकों से जापान की राजनीति में प्रभावी रही है, लेकिन इसके इतिहास में पहली बार किसी महिला को शीर्ष नेतृत्व सौंपा गया। ताकाइची का नेतृत्व जापान की राजनीति में एक नए अध्याय के रूप में देखा जा रहा है।
अफ्रीका में भी महिला नेतृत्व ने इतिहास रचा। 21 मार्च 2025 को 72 वर्षीय नेटुम्बो नंदी-नदैतवा ने नामीबिया की पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। वे सत्तारूढ़ स्वापो पार्टी से जुड़ी हैं, जिसने देश की आज़ादी की लड़ाई का नेतृत्व किया था। नदैतवा की राजनीतिक यात्रा भी संघर्ष से भरी रही है महज 14 साल की उम्र में वे उस आंदोलन का हिस्सा बनीं, जो रंगभेद के खिलाफ लड़ रहा था।
अफ्रीकी महाद्वीप से ही एक और नाम उभरा मलावी की फलेस डेब्रा मोयो। अक्टूबर 2025 के चुनावों में उन्होंने चिटिपा नॉर्थ सीट से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार ऐतिहासिक जीत दर्ज की। यह पहली बार था जब इस क्षेत्र से किसी महिला ने संसद तक पहुंच बनाई जिससे स्थानीय राजनीति में नया उत्साह देखने को मिला।
अमेरिका में भारतीय मूल की गजाला हाशमी ने भी इतिहास रचा। हैदराबाद में जन्मीं हाशमी वर्जीनिया की लेफ्टिनेंट गवर्नर चुनी गईं और इस पद तक पहुंचने वाली पहली भारतीय मूल की महिला बनीं। डेमोक्रेट उम्मीदवार हाशमी ने रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी जॉन रीड को कड़े मुकाबले में हराया और 52.4 प्रतिशत वोट हासिल किए।
यह भी पढ़ें:- एपस्टीन की ‘काली डायरी’ का पहला अध्याय; क्लिंटन से लेकर शाही परिवार तक, तस्वीरों ने मचा दी हलचल
इन सबके बीच वेनेजुएला की मारिया कोरिना मचाडो की कहानी सबसे अलग और प्रेरणादायक रही। सत्ता विरोधी राजनीति की प्रतीक बन चुकी मचाडो को नोबेल पीस प्राइज 2025 के लिए चुना गया। लेकिन पुरस्कार लेने की राह आसान नहीं थी। देश में प्रतिबंधों और खतरे के बीच उन्होंने गुप्त रास्तों से समुद्र और फिर हवाई यात्रा कर ओस्लो पहुंचने की कोशिश की। हालांकि वे समय पर समारोह में नहीं पहुंच सकीं, लेकिन उनका साहस और संघर्ष दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गया।






