तस्वीर में राष्ट्रपति पेजेशकियन मसूद और अली ख़ामेनेई
तेहरान: ईरान की राजधानी तेहराज में हमास चीफ इस्माइल हनिया की हत्या के बाद से ईरान बौखलाया हुआ है। हानिया की हत्या का आरोप ईरान ने इसराइल पर लगाया है। हानिया की मौत का बदला लेने के लिए ईरान लगातार इसराइल को धमका रहा है। स्थिति ये है कि आज या कल भर में इसराइल को एक और युद्ध का सामना करना पड़ेगा। ईरान कभी भी इसराइल पर हमला कर सकता है। फिलहाल अभी तक तो ऐसा हुआ नहीं। हानिया की हत्या हुए 10 दिन हाे गए हैं। अब जो अंदर से खबर आ रही है वो ये है कि इसराइल पर हमले को लेकर ईरान में दो फाड़ हो गया है।
ईरान ने भले ही इसराइल पर हमले का एलान कर दिया है। लेकिन, ईरान इस पर एकमत नहीं हो पा रहा है। दरअसल, ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मसूद और रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स आपस में बंटे हैं।
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आक्रामक रणनीति का विरोध
अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक, हानिया की हत्या के बाद इसराइल के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर ईरानी सरकार बंट गई है। इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स इसराइली शहरों पर सीधे और मिसाइल हमले की बात कह रहा है। वहीं, राष्ट्रपति पेजेशकियन हमले की इस आक्रामक रणनीति का विरोध कर रहे हैं।
उदारवादी रुख
इजरायल के नागरिक ठिकानों पर हमले के पक्ष में पेजेशकियन नहीं है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबक, राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन अपने उदारवादी नेतृत्व के लिए जाने जाते हैं। पेजेशकियन इसराइल के नागरिक ठिकानों पर हमले के पक्ष में नहीं हैं। वहीं इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स इजरायल के नागरिक ठिकानों पर मिसाइल और रॉकेट हमले की बात कर रहे।
ईरान काे सता रहा डर
ईरानी राष्ट्रपति पेजेशकियन इसराइल के बाहर स्थित खुफिया एजेंसी मोसाद के ठिकानों पर हमलों की बात कह रहे हैं। उनका मानना है कि ये रणनीति से इसराइल के साथ पूरी तरह से युद्ध के जोखिम कम होगा। साथ ही पेजेशकियन का ये भी कहना है कि अगर युद्ध हुआ तो ईरान को गंभीर परिणाम भुगतने हो सकते हैं। राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन के एक करीबी सहयोगी ने टेलीग्राफ को बताया कि पेजेशकियन को डर है कि इसराइल पर किसी भी सीधे हमले के गंभीर परिणाम भुकतने पड़ सकते हैं। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि आखिर ईरान इसराइल पर कब और किस तरह से हमला करेगा।
अमेरिका का हस्तक्षेप से ईरान हटा पीछे
हालांकि एक तरफ ये है कि ईरान ने जब इसराइल पर हमला करने की धमकी और एलान किया। तो उधर अमेरिका भी इसराइल के समर्थन में इस युद्ध में शामिल होने के लिए कमर कस लिया। अमेरिका ने ये समर्थन खुले तौर पर किया। दूसरी तरफ अमेरिका मिडिल ईस्ट में युद्ध नहीं चाहता है। वह इस बात की गुजारिश ईरान से कर चुका है। हो सकता है कि अमेरिका के हस्तक्षेप की वजह से ईरान कदम पीछे खींच रहा है।
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