
पाकिस्तान से बांग्लादेश तक 'मिलिट्री राज' की आहट, (डिजाइन फोटो)
Bangladesh Army Magistrate Power: अभी हाल ही में पाकिस्तान के संविधान में एक संशोधन पारित हुआ है, जिसके तहत जनरल आसिम मुनीर को ‘चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेस (CDF)’ की नई जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। यह पद थलसेना, वायुसेना और नौसेना तीनों सेनाओं से ऊंचा होगा।
इसके ठीक बाद ही बांग्लादेश की अंतरिम यूनुस सरकार ने भी सेना को एक बार फिर मजिस्ट्रेट पावर दे दी है। यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जब देश में आम चुनाव की सुगबुगाहट तेज हो गई है। इस आदेश के तहत अब सेना ऑन-द-स्पॉट फैसला ले सकेगी और हालात को कंट्रोल करने के लिए मजिस्ट्रेट की तरह कार्रवाई कर सकेगी।
रिपोर्ट के मुताबिक, यूनुस सरकार ने मार्च 2026 तक इस फैसले को लागू रखने की घोषणा की है। यही वह समय है जब देश में आम चुनाव प्रस्तावित हैं। यह कदम ऐसे माहौल में उठाया गया है, जब ढाका समेत कई हिस्सों में हिंसक घटनाएं बढ़ी हैं। पिछले दो दिनों में राजधानी में तीन धमाके हो चुके हैं, जिससे सरकार की चिंता बढ़ गई है।
बांग्लादेश में यह प्रावधान पहली बार तख्तापलट के बाद लागू हुआ था। उस समय हिंसक हालात को काबू में रखने के लिए सेना को मजिस्ट्रेट जैसी शक्तियां दी गई थीं। अब जबकि चुनाव करीब हैं, यूनुस सरकार का कहना है कि विपक्ष की साजिशों और संभावित हिंसा को देखते हुए सेना को यह अधिकार जारी रखना जरूरी है।
सरकार के प्रेस सचिव के अनुसार, पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग निष्पक्ष चुनाव को बाधित करने की कोशिश कर रही है। सरकार का दावा है कि हसीना और उनकी पार्टी के नेता देशभर में हिंसा फैलाने की साजिश रच रहे हैं, जिससे स्थिरता खतरे में पड़ सकती है।
पाकिस्तान की तरह बांग्लादेश में भी सेना हमेशा से ताकतवर रही है। आजादी के बाद से अब तक देश में छह बार सैन्य तख्तापलट हो चुका है। मौजूदा सेना प्रमुख जनरल वकार जमान पर भी अमेरिका के साथ मिलकर शेख हसीना को सत्ता से हटाने की साजिश में शामिल होने के आरोप लगे हैं।
यह भी पढ़ें:- बगराम से गाजा तक… अमेरिका बना रहा है ‘वैश्विक जाल’, हर मोर्चे पर कब्जे की तैयारी!
अगस्त 2024 में छात्रों के विरोध प्रदर्शन के बाद शेख हसीना को सत्ता से हटना पड़ा था। उसी समय यूनुस की अंतरिम सरकार बनी थी, लेकिन हकीकत यह है कि बांग्लादेश की सत्ता पर सेना की छाया आज भी कायम है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मजिस्ट्रेट पावर के फैसले से देश में लोकतांत्रिक माहौल कमजोर हो सकता है। यह कदम सेना को असीम अधिकार देता है, जिससे चुनावी माहौल पर असर पड़ना तय है।






