महाकुंभ, फोटो सोर्स - सोशल मीडिया
नवभारत डेस्क : बीते 13 जनवरी से महाकुंभ 2025 का आयोजन शुरू है। ऐसे में अब 8 दिनों बाद 26 फरवरी को महाकुंभ मेले का समापन हो जाएगा। बता दें, अब तक के आए रिपोर्ट के मुताबकि 54 करोड़ के से ज्यदा लोगों ने महाकुंभ में डुबकी लगा ली है। महाकुंभ के समापन से पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल यानी NGT से चौंकाने वाला दावा किया है।
दरअसल, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने NGT को अपनी रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें बताया गया है कि महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा बढ़ गई है, जिसके कारण नदी में प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी देखी गई है। रिपोर्ट के दावों के अनुसार महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में विभिन्न स्थानों पर फेकल कोलीफॉर्म का स्तर स्नान के लिए प्राथमिक जल गुणवत्ता के अनुरूप नहीं है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में कहा गया है कि सीवेज संदूषण के सूचक फेकल कोलीफॉर्म की स्वीकार्य सीमा 2500 यूनिट प्रति 100 मिली हो गई है। बता दें, प्रयागराज में गंगा और यमुना नदियों में सीवेज के बहाव को रोकने के मामले पर NGT सुनवाई कर रहा है। एनजीटी ने यूपी सरकार को 2025 के महाकुंभ मेले के लिए सीवेज प्रबंधन योजना बनाने का निर्देश दिया था।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने दिसंबर 2024 में आदेश दिया था कि श्रद्धालुओं को उस पानी की गुणवत्ता के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए, जिसमें वे डुबकी लगाने जा रहे हैं। हालांकि, यह जानकारी अब तक नहीं दी जा रही है। NGT ने कहा था कि महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में गंगा जल की पर्याप्त उपलब्धता होनी चाहिए और यह पानी पीने और नहाने के लिए सुरक्षित होना चाहिए।
आपको बता दें, यह पहली बार नहीं है जब पानी की गुणवत्ता पर सवाल उठे हैं। 2019 में प्रयागराज में हुए कुंभ मेले के दौरान भी पानी की गुणवत्ता खराब पाई गई थी। उस समय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट में यह कहा गया था कि प्रमुख स्नान के दिनों में भी पानी की गुणवत्ता खराब थी। रिपोर्ट के अनुसार, करसर घाट पर पानी में बीओडी (बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड) और फेकल कोलीफॉर्म का स्तर मानकों से ऊपर पाया गया था। खासकर, प्रमुख स्नान के समय सुबह का पानी शाम के मुकाबले अधिक प्रदूषित था।
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इसके अलावा, महाशिवरात्रि और उसके बाद के दिनों में भी पानी में फेकल कोलीफॉर्म का स्तर मानकों से अधिक था। यमुना नदी का घुलनशील ऑक्सीजन स्तर सभी मानकों के अनुसार था, लेकिन इसके पीएच, बीओडी और फेकल कोलीफॉर्म का स्तर कई बार स्वीकार्य सीमा से बाहर था। गंगा की सहायक नदियों में काली नदी सबसे अधिक प्रदूषित पाई गई थी।