नेपाल में सीएम योगी के पोस्टर (फोटो सोर्स -सोशल मीडिया)
काठमांडू: नेपाल की सियासत में इन दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम चर्चा में है। हाल ही में काठमांडू में राजशाही की बहाली के समर्थन में निकली एक रैली में योगी आदित्यनाथ की तस्वीरें लहराई गईं और उनके समर्थन में नारे भी लगे। यह नजारा नेपाल के राजनीतिक गलियारों में गर्मा गया। प्रधानमंत्री के.पी. ओली की पार्टी ने इसे नेपाल की संप्रभुता पर हमला बताया, जबकि राजशाही समर्थकों ने इसे सरकार की साजिश करार दिया। आखिर योगी आदित्यनाथ नेपाल की राजनीति में इतना बड़ा नाम कैसे बन गए है, क्या इसका कारण हिंदुत्व की बढ़ती लोकप्रियता है या गोरखनाथ मठ और नेपाल राजघराने के ऐतिहासिक संबंध आइए, जानते हैं।
नेपाल और भारत का रिश्ता सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भी है। गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मंदिर और नेपाल के शाही परिवार का सदियों पुराना जुड़ाव रहा है। हर साल 14 जनवरी को नेपाल नरेश के परिवार की ओर से गुरु गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाई जाती है। कहा जाता है कि गोरखनाथ ने नेपाल के पहले शाह वंश के राजा को राजतिलक का आशीर्वाद दिया था, तभी से नेपाल की राजशाही और नाथ संप्रदाय का रिश्ता गहरा हो गया। गोरखनाथ मठ के पूर्व महंत दिग्विजयनाथ और अवैद्यनाथ ने नेपाल की राजशाही को समर्थन दिया था, और अब लोगों को लगता है कि योगी आदित्यनाथ नेपाल को कम्युनिस्ट शासन से मुक्ति दिलाने में भूमिका निभा सकते हैं।
योगी आदित्यनाथ को भारत में हिंदुत्व का सबसे बड़ा चेहरा माना जाता है। नेपाल कभी दुनिया का एकमात्र हिंदू राष्ट्र था, लेकिन 2008 में राजशाही समाप्त होने के बाद इसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना दिया गया। तब से नेपाल में गरीबी, बेरोजगारी और अस्थिरता बढ़ी है, जिससे जनता में असंतोष है। नेपाल में भारतीय न्यूज चैनल और बॉलीवुड का बड़ा प्रभाव है, और वहां योगी आदित्यनाथ की छवि एक सख्त प्रशासक के रूप में बनी है। उत्तर प्रदेश में अपराधियों और माफियाओं पर हुई कार्रवाई ने नेपाल में भी लोगों का ध्यान खींचा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का नेपाल से जुड़ाव नया नहीं है। आरएसएस नेपाल को हमेशा अखंड भारत का हिस्सा मानता रहा है। 1964 में नेपाल के राजा महेंद्र को नागपुर में आरएसएस के मकर संक्रांति कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था। नेपाल में आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद की शाखाएं दूर-दूर तक फैली हुई हैं, और 1980-90 के दशक में विश्व हिंदू परिषद ने नेपाल के राजाओं को ‘विश्व हिंदू सम्राट’ की उपाधि भी दी थी। नेपाल की जनता के बीच यह धारणा तेजी से बन रही है कि हिंदू राष्ट्र की बहाली और मजबूत नेतृत्व के लिए योगी आदित्यनाथ ही सही विकल्प हो सकते हैं।
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नेपाल में राजशाही समर्थक एक बार फिर सक्रिय हो रहे हैं, और योगी आदित्यनाथ का नाम इसमें एक बड़ा प्रतीक बन गया है। आने वाले दिनों में नेपाल में हिंदुत्व और राजशाही समर्थक आंदोलन और तेज हो सकते हैं। क्या नेपाल एक बार फिर हिंदू राष्ट्र बनेगा? वहां की राजनीति पर योगी आदित्यनाथ का कितना प्रभाव है यह देखना दिलचस्प होगा।