संदर्भ तस्वीर (डिजाइन)
लखनऊ: देश के सबसे बड़े सियासी सूबे यानी उत्तर प्रदेश के लिए भारतीय जनता पार्टी नया अध्यक्ष तलाशने में जुटी हुई है। राजनैतिक दृष्टि से सबसे मजबूत प्रदेश होने के कारण पार्टी यहां अध्यक्ष चुनने के लिए हर एक पहलू को ध्यान में रख रही है। जिसमें सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले से लेकर विपक्षी पार्टियों के नैरेटिव को तोड़ने वाले समीकरणों तक को तरजीह दी जा रही है। लेकिन अब ऐसा माना जा रहा है कि पार्टी को सफलता मिल गई है!
बीजेपी के ‘चाणक्य’ कहे जाने वाले अमित शाह पार्टी का सियासी संतुलन बनाए रखने वाले समीकरणों को सेट करने के लिए जाने जाते हैं। बीते दिनों लखनऊ में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने मंच से केशव प्रसाद मौर्य को एक बार फिर ‘मित्र’ कहकर पुकारा जिसने राजनैतिक कयासों को हवा दे दी है, जिसमें यह कहा जा रहा है कि पार्टी एक बार फिर से केशव प्रसाद मौर्य को यूपी की कमान सौंपने वाली है।
अमित शाह के बयान के अलावा दो और ऐसे कारण हैं जो केशव प्रसाद मौर्य की तरफ इशारा कर रहे हैं। क्योंकि अमित शाह इससे पहले भी उन्हें दो बार मित्र कहकर संबोधित कर चुके हैं। और दो कारण क्या हैं? हम जानेंगे लेकिन उससे पहले यह जान लेना ज़रूरी है कि यूपी में पार्टी अध्यक्ष का चुनाव इतना अहम क्यों माना जा रहा है…
दरअसल, भारतीय जनता पार्टी को अपना नया अध्यक्ष चुनना है। वर्तमान अध्यक्ष जेपी नड्डा को तीसरी बार एक्सटेंशन मिल चुका है। पार्टी संविधान के संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव तभी हो सकता है जब 50 प्रतिशत राज्यों के संगठन चुनाव संपन्न हो जाएं। यही वजह है कि पार्टी जल्द से बड़े राजनैतिक सूबों में अपना अध्यक्ष चुन लेना चाहती है।
केशव प्रसाद मौर्य व अमित शाह (सोर्स- सोशल मीडिया)
वहीं दूसरी तरफ, उत्तर प्रदेश में इस बार जो भी अध्यक्ष बनेगा उसी के नेतृत्व में साल 2027 का विधानसभा चुनाव भी लड़ा जाएगा। यहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता जगजाहिर है, लेकिन ओबीसी नेताओं का एक वर्ग शीर्ष नेतृत्व में बदलाव चाहता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें 63 से घटकर 33 रह गई हैं, जिससे पार्टी ओबीसी वोट बैंक को लेकर चिंतित है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति पर दशकों से पैनी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्रा के मुताबिक यदि बीजेपी ओबीसी चेहरे पर दांव लगाने की सोच रही है तो उसमें पहला नाम केशव प्रसाद मौर्य का है। क्योंकि पार्टी प्रदेश में सामंजस्य स्थापित करके चलना चाहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि यदि सीएम किसी ओबीसी को बनाती है तो उसे अध्यक्ष अगड़ी जाति से बनाना पड़ेगा!
हालांकि, योगेश मिश्रा ने यह भी कहा कि केशव प्रसाद मौर्य पिछड़ों के नेता माने जाते हैं लेकिन उनकी पैठ उतनी ज्यादा नहीं है। केशव की अगर पैठ होती तो अपने इर्द-गिर्द के चुनाव ज़रूर जीतते। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि बीजेपी प्रयागराज में हार गई और फूलपुर हारते-हारते बची। यह सीटें केशव प्रसाद मौर्य के प्रभाव वाल मानीं जाती हैं।
बाचतीच में योगेश मिश्रा ने बड़ा दावा करते हुए यह भी कहा कि बीजेपी को ओबीसी पॉलिटिक्स की समझ नहीं है। उन्होंने कहा कि भाजपा ओबीसी पॉलिटिक्स तो कर रही है लेकिन पिछले 10-12 सालों में एक भी बड़ा ओबीसी नेता नहीं तैयार कर पाई है। न उसने कोई बड़ा कुर्मी नेता तैयार किया है, न को निषाद नेता तैयार किया है और न ही राजभर लीडर तैयार कर पाई है। इसके लिए पार्टी दूसरे दलों के सहारे है।
केशव प्रसाद मौर्य (सोर्स- सोशल मीडिया)
अब अगर योगेश मिश्रा की बातों पर गौर करें तो यह बात साफ है कि बीजेपी को यदि पिछड़े लीडर को अध्यक्ष बनाना पड़े तो उनके पास केशव प्रसाद मौर्य के जैसा दूसरा मजबूत विकल्प नहीं है। इसके अलावा केशव प्रसाद मौर्य के अध्यक्ष रहते हुए ही भारतीय जनता पार्टी ने 2017 में यूपी विधानसभा का चुनाव जीता था।
यूपी बीजेपी का नया अध्यक्ष पिछड़े समुदाय से बनाए जाने की संभावनाओं के पीछे एक तर्क यह भी है कि पार्टी विपक्षी दलों खासकर समाजवादी पार्टी के ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक और अगड़ा) को तोड़ने के प्रयास में है। जिसने लोकसभा चुनाव में पार्टी को अच्छा खासा नुकसान पहुंचाया है।
जानकारी के लिए आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में अब तक एक ही बार ऐसा हुआ है कि बीजेपी ने एक ही नेता को दो बार अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी है। तब पार्टी ने कलराज मिश्र को पहली बार 1991 में और दूसरी बार साल 2000 में अध्यक्ष बनाया था। अब यदि केशव प्रसाद मौर्य को अध्यक्ष बनाया जाता है यह दूसरा मौका होगा। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी क्या कुछ निर्णय लेती है।