इलाहाबाद हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
प्रयागराज: उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोशल मीडिया पर पाकिस्तान समर्थक पोस्ट के मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी घटना या फिर भारत का उल्लेख किए बिना केवल पाकिस्तान का समर्थन किया गया हो तो वह भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के अंतर्गत प्रथम दृष्टया अपराध नहीं माना जा सकता है। इसी टिप्पणी के आधार पर उच्च न्यायालय ने इंस्टाग्राम पर पाकिस्तान के पक्ष में पोस्ट करने के आरोपी रियाज को जमानत दे दी।
न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने सुनवाई के दौरान कहा कि रिकार्ड के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि याचिकाकर्ता ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है जो भारत के लिए अपमानजनक हो। अदालत ने 10 जुलाई को दिए आदेश में ये भी जोड़ा कि किसी अन्य देश के समर्थन में सिर्फ एक संदेश पोस्ट करने से भारतीय नागरिकों में नाराज़गी या वैमनस्य की भावना उत्पन्न हो सकती है।
जस्टिस देशवाल ने BNS की सख्त धारा 152 का हवाला देते हुए ‘उचित सावधानी’ बरतने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि बीएनएस की धारा 196 में सात साल तक की सजा का प्रावधान है, जबकि धारा 152 एक गैर-जमानती अपराध है, जिसमें आजीवन कारावास या सात साल तक की कैद और जुर्माना संभव है। उन्होंने धारा 152 को एक नया प्रावधान बताया, जिसकी तुलना भारतीय दंड संहिता (IPC) में किसी धार से नहीं की जा सकती।
हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 152 के लागू होने के लिए आवश्यक है कि आरोपी ने मौखिक या लिखित शब्दों, संकेतों, चित्रों या इलेक्ट्रॉनिक संप्रेषण के माध्यम से विद्रोह, विध्वंसक गतिविधि, अलगाव की भावना या भारत की एकता और संप्रभुता को नुकसान पहुंचाने का इरादा प्रदर्शित किया हो। कोर्ट ने कहा कि किसी देश के समर्थन में पोस्ट करने से असंतोष फैल सकता है, लेकिन वह जरूरी नहीं कि देशद्रोह या अस्थिरता को बढ़ावा देता हो।
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जस्टिस देशवाल ने आगे यह भी कहा कि सोशल मीडिया पर व्यक्त किए गए विचार तथा पोस्ट अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत आते हैं, और जब तक वे देश की संप्रभुता, अखंडता या फिर अलगाववाद को प्रोत्साहित नहीं करते, तब तक उनकी संकीर्ण व्याख्या नहीं की जानी चाहिए।